धर्म : धनासरी महला ५ घरु ६ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सुनहु संत पिआरे बिनउ हमारे जीउ ॥ हरि बिनु मुकति न काहू जीउ ॥ रहाउ ॥ मन निरमल करम करि तारन तरन हरि अवरि जंजाल तेरै काहू न काम जीउ ॥ जीवन देवा पारब्रहम सेवा इहु उपदेसु मो कउ गुरि दीना जीउ ॥१॥ तिसु सिउ न लाईऐ हीतु जा को किछु नाही बीतु अंत की बार ओहु संगि न चालै ॥ मनि तनि तू आराध हरि के प्रीतम साध जा कै संगि तेरे बंधन छूटै ॥२॥ गहु पारब्रहम सरन हिरदै कमल चरन अवर आस कछु पटलु न कीजै ॥ सोई भगतु गिआनी धिआनी तपा सोई नानक जा कउ किरपा कीजै ॥३॥१॥२९॥
अर्थ : राग धनासरी, घर ६ में गुरु अर्जन देव जी की बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे प्यारे संत जनो ! मेरी बेनती सुणो, परमात्मा (के सुमिरन) के बिना (माया के बंधनो से) किसी की भी खलासी नहीं होती ।रहाउ। हे मन ! (जीवन को) पवित्र करने वाले (हरि-सुमिरन के) काम करा कर, परमात्मा (का नाम ही संसार-सागर से) पार निकलने के लिए जहाज है । (दुनिया के) ओर सारे जंजाल तेरे किसी भी काम नहीं आएँगे । प्रकाश-रूप परमात्मा की सेवा-भक्ति ही (असल) जीवन है-यह सिख मुझे गुरु ने दी है ।1 ।
हे भाई ! उस (धन-पदार्थ) के साथ प्रेम नहीं होना चाहिए, जिस की कोई पहुँच ही नहीं । वह (धन-पदार्थ) अन्त समय के साथ नहीं जाता। अपने मन में हृदय में तूं परमात्मा का नाम सुमिरन कर । परमात्मा के साथ प्रेम करने वाले संत जनाँ (की संगत करा कर),क्योंकि उन (संत जनों की) संगत में तेरे (माया के) बंधन खत्म हो सकते हैं ।2। हे भाई ! परमात्मा का सहारा पकड़, (अपने) हृदय में (परमात्मा के) कोमल चरण (वसा) (परमात्मा के बिना) किसी ओर की आशा नहीं करनी चाहिए, कोई ओर सहारा नहीं ढूंढणा चाहिए । हे नानक ! वही मनुख भक्त है, वही गिआनवान है, वही सुरति-अभिआसी है, वही तपस्वी है, जिस ऊपर परमात्मा कृपा करता है।3 ।1।29|