Hukamnama : देवगंधारी ५ ॥ माई जो प्रभ के गुन गावै ॥ सफल आइआ जीवन फलु ता को पारब्रहम लिव लावै ॥१॥ रहाउ ॥ सुंदरु सुघड़ु सूरु सो बेता जो साधू संगु पावै ॥ नामु उचारु करे हरि रसना बहुड़ि न जोनी धावै ॥१॥ पूरन ब्रहमु रविआ मन तन महि आन न द्रिसटी आवै ॥ नरक रोग नही होवत जन संगि नानक जिसु लड़ि लावै ॥२॥१४॥
अर्थ : हे माँ! जो मनुख परमात्मा के गुण गता रहता है, परमात्मा के चरणों में प्रेम बनाये रखता है, उस का जगत में आना कामयाब हो जाता है, उस को जिन्दगी का फल मिल जाता है।१।रहाउ। हे माँ! जो मनुख गुरु का साथ प्राप्त कर लेता है, वह मनुख सुंदर जीवन वाला उत्तम सूरमा बन जाता है, वह अपनी जिव्हा से प्रमाता का नाम उच्चारता रहता है, और, बार बार योनिओं के चाकर में नहीं भटकता।१। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! (कह-) जिस मनुख को प्रमटका संत जानो के संग लगा देता है, उस को संत जनों की सांगत से नरक के रोग नहीं व्यापते, सरब-व्यापक प्रभु हर समय उस के मन में उस के हृदये में बसा रहता है, प्रभु के बिना उस को (कहीं भी) कोई और नहीं दिखता।२।१४।