धर्म : सोरठि महला ३ घरु १ तितुकी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ भगता दी सदा तू रखदा हरि जीउ धुरि तू रखदा आइआ ॥ प्रहिलाद जन तुधु राखि लए हरि जीउ हरणाखसु मारि पचाइआ ॥ गुरमुखा नो परतीति है हरि जीउ मनमुख भरमि भुलाइआ ॥१॥ हरि जी एह तेरी वडिआई ॥ भगता की पैज रखु तू सुआमी भगत तेरी सरणाई ॥ रहाउ ॥ भगता नो जमु जोहि न साकै कालु न नेड़ै जाई ॥ केवल राम नामु मनि वसिआ नामे ही मुकति पाई ॥ रिधि सिधि सभ भगता चरणी लागी गुर कै सहजि सुभाई ॥२॥
अर्थ : राग सोरठि, घर १ में गुरु अमरदास जी की तीन-तुकी बाणी। अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे हरी! तूं अपने भगतों की इज्जत सदा रखता है, जब से जगत बना है तब से (भगतों की इज्जत) रखता आ रहा है। हे हरी! प्रहलाद भगत जैसे अनेकों सेवकों के तुने इज्जत राखी है, तुमने हर्नाकश्यप को मार डाला। हे हरी! जो मनुख गुरु के सन्मुख रहते हैं उनको निश्चय होता है (की भगवान् भगतों की इज्जत बचाता है, परन्तु) अपने मन के पीछे चलने वाले मनुख भटक कर कुराह पड़े रहते हैं।१। हे हरी! हे स्वामी! भगत तेरी सरन पड़े रहते हैं, तूं भगतों की इज्जत रख। हे हरी! (भगतों की इज्जत) तेरी ही इज्जत है।रहाउ। हे भाई! भगतों को मौत डरा नहीं सकती, मौत का डर भगतों के नजदीक नहीं आ सकता (क्यों-की मौत के डर की जगह) परमात्मा का नाम हर समय मन में बस्ता है, नाम की बरकत से ही वह (मौत के डर से मुक्ति पा लेते हैं। भगत गुरु के द्वारा (गुरु की सरन आ कर) आत्मिक अदोलता में प्रभु-प्रेम में (टिके रहते है, इस लिए) सब करामाती शक्तियां भगतों के चरणों में लगी रहती हैं।२।