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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 18 दिसंबर

बिलावलु महला ५ ॥ सहज समाधि अनंद सूख पूरे गुरि दीन ॥ सदा सहाई संगि प्रभ अम्रित गुण चीन ॥ रहाउ ॥ जै जै कारु जगत्र महि लोचहि सभि जीआ ॥ सुप्रसंन भए सतिगुर प्रभू कछु बिघनु न थीआ ॥१॥ जा का अंगु दइआल प्रभ ता के सभ दास ॥ सदा सदा वडिआईआ नानक गुर पासि ॥२॥१२॥३०॥

हे भाई! जिस मनुख ऊपर गुरु दयावान होता है, उस को) पूरे गुरु ने आत्मिक अडोलता में एक-रस टिकाव के सारे सुख आनंद दे दिए। प्रभु उस मनुख का मददगार बना रहता है, उस के अंग-संग रहता है, वह मनुख प्रभु के आत्मिक जीवन देने वाले गुण (अपने मन में) विचरता रहता है॥ रहाउ॥ हे भाई! उस मनुख की सारे जगत में हर जगह सोभा होती है, (जगत के) सारे जीव (उस का दर्शन करना) चाहते हैं, जिस मनुख ऊपर गुरु परमात्मा पूरी तरह प्रसन्न हो गए, उस मनुख के जीवन के रास्ते में कोई रुकावट नहीं आती॥१॥ हे भाई! दया का चश्मा प्रभु जिस (मनुख) का पक्ष करता है, सब जीव उस के सेवक हो जाते हैं। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! गुरु के चरनो में रहने से सदा ही आदर मान मिलता है॥२॥१२॥३०

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