Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 19 दिसंबर

बिलावलु महला ५ ॥ प्रभ जनम मरन निवारि ॥ हारि परिओ दुआरि ॥ गहि चरन साधू संग ॥ मन मिसट हरि हरि रंग ॥ करि दइआ लेहु लड़ि लाइ ॥ नानका नामु धिआइ ॥१॥ दीना नाथ दइआल मेरे सुआमी दीना नाथ दइआल ॥ जाचउ संत रवाल ॥१॥ रहाउ ॥ संसारु बिखिआ कूप ॥ तम अगिआन मोहत घूप ॥ गहि भुजा प्रभ जी लेहु ॥ हरि नामु अपुना देहु ॥ प्रभ तुझ बिना नही ठाउ ॥ नानका बलि बलि जाउ ॥२॥

अर्थ: (हे भाई!बेनती करा करो ) हे प्रभु! (मेरा ) जन्म मरन ( का चक्र) खत्म कर दो । मैं (कई तरफ से) आस लगा कर तेरे दर पर आ गिरा हु। ( मेहर कर ) तेरे संत जानो के चरण पकड़ कर ( तेरे संत जानो का ) पल्ला पकड़ कर, मेरे मन को, हे हरी तेरा प्यार मीठा लगता रहे। कृपा कर के मुझे अपने लड़ लगा ले। गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक! प्रभु का नाम सुमीरा कर॥1॥ हे गरीबों के खसम! हे दया के सागर! हेमरे स्वामी! हे दिनों के नाथ! हे दयाल! मैं तेरे संत जनों के चरणों की धुल मांगता हूँ॥1॥रहाउ॥ यह जगत माया (के मोह) का कुआँ है, आत्मिक जीवन की तरफ से बी-समझी का घुप अन्धकार (मुझे) मोह रहा है। (मेरी) बाँह पकड़ के (मुझे) बचा ले हे प्रभु! मुझे अपना नाम दो! तेरे बिना मेरा कोई और सहारा नहीं है। गुरू नानक जी स्वयं को कहते हैं, हे नानक! (प्रभु के दर पर अरदास कर, और कह) हे प्रभु! मैं (तेरे नाम से) सड़के-कुर्बान जाता हूँ, कुर्बान जाता हूँ॥2॥

Exit mobile version