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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 21 दिसंबर

सलोक मः ३॥ माणसु भरिआ आणिआ माणसु भरिआ आइ॥ जितु पीतै मति दूरि होइ बरलु पवै विचि आइ ॥ आपणा पराइआ न पछाणई खसमहु धके खाइ॥ जितु पीतै खसमु विसरै दरगह मिलै सजाइ॥ झूठा मदु मूलि न पीचई जे का पारि वसाइ ॥ नानक नदरी सचु मदु पाईऐ सतिगुरु मिलै जिसु आइ ॥ सदा साहिब कै रंगि रहै महली पावै थाउ ॥१॥

मनुख शराब से भरा हुवा बर्तन लता है जिस में से कोई और आ कर पियाला भर लेता है । पर (शराब) जिस के पीने से अकल दूर हो जाती है और बोलने का जोश आ जाता है, अपने पराये की पहचान नहीं रहती, मालिक की तरफ से ढके पड़ते है, जिस के पीने से खसम (भगवान) विसरदा है और दरगाह में सजा मिलती है, ऐसी गलत शराब, जहा तक हो सके नहीं पीनी चाहिए । गुरू नानक जी कहते हैं, हे नानक ! प्रभु की मेहर नजर से नाम रूप नशा ( उस मनुख को ) मिलता है, जिस को गुरु आ के मिल जाये । ऐसा मनुख सदा मालिक के (नाम दे) रंग में रंगा रहता है और दरगाह में उस को जगह मिलती है ॥੧॥

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