Hukamnama 26 December 2024 : सोरठि महला ५ ॥ राजन महि राजा उरझाइओ मानन महि अभिमानी ॥ लोभन महि लोभी लोभाइओ तिउ हरि रंगि रचे गिआनी ॥१॥ हरि जन कउ इही सुहावै ॥ पेखि निकटि करि सेवा सतिगुर हरि कीरतनि ही त्रिपतावै ॥ रहाउ ॥ अमलन सिउ अमली लपटाइओ भूमन भूमि पिआरी ॥ खीर संगि बारिकु है लीना प्रभ संत ऐसे हितकारी ॥२॥ बिदिआ महि बिदुअंसी रचिआ नैन देखि सुखु पावहि ॥ जैसे रसना सादि लुभानी तिउ हरि जन हरि गुण गावहि ॥३॥ जैसी भूख तैसी का पूरकु सगल घटा का सुआमी ॥ नानक पिआस लगी दरसन की प्रभु मिलिआ अंतरजामी ॥४॥५॥१६॥
अर्थ : (हे भाई!) जैसे राज के कामों में राजा मगन रहता है, जैसे मान बढ़ाने वाले कामों में आदर-मान का भूखा मनुख मस्त रहता है, जैसे लालची मनुख लालच बढ़ाने वाले कर्मों में फँसा रहता है, उसी प्रकार जीवन के सूझ वाला मनुख प्रेम-रंग में मस्त रहता है।१। परमात्मा के भागर को यही कर्म अच्छा लगता है। (भक्त परमात्मा को) अंग-संग देख कर, और, गुरु की सेवा करके परमात्मा की सिफत सलाह में प्रसन रहता है।रहाउ।
हे भाई! नशे करने का प्रेमी मनुख नशों के साथ जुड़ा रहता है, जमीं के मालिकों को जमीन प्यारी लगती हैं, बच्चा दूध के साथ ही पचरता रहता है। इसी प्रकार संत जन परमात्मा के साथ प्यार करते हैं।२। हे भाई! विद्वान मनुष्य विद्या (पढ़ने पढ़ाने) मे ख़ुश रहता है, आँखें (पदार्थ) देख देख के सुख मानती हैं। हे भाई! जिस तरह जीभ (स्वादिष्ट पदार्थों के) स्वाद (चख्खन) में ख़ुश रहती है, वैसे ही प्रभू के भगत प्रभू की सिफ़त-सलाह के गीत गाते हैं ॥३॥ हे भाई! सभी शरीरों का मालिक प्रभू जिस तरह किसे जीव की लालसा हो वैसी ही पूरी करने वाला है। हे नानक जी! (जिस मनुष्य को) परमातमा के दर्शन की प्यास लगती है, उस मनुष्य को दिल की जानने वाला परमातमा (आप) आ मिलता है ॥४॥५॥१६॥