बिलावलु महला ५ छंत ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ मंगल साजु भइआ प्रभु अपना गाइआ राम ॥ अबिनासी वरु सुणिआ मनि उपजिआ चाइआ राम ॥ मनि प्रीति लागै वडै भागै कब मिलीऐ पूरन पते ॥ सहजे समाईऐ गोविंदु पाईऐ देहु सखीए मोहि मते ॥ दिनु रैणि ठाढी करउ सेवा प्रभु कवन जुगती पाइआ ॥ बिनवंति नानक करहु किरपा लैहु मोहि लड़ि लाइआ ॥१॥
राग बिलावलु में गुरु अर्जनदेव जी की बाणी ‘छंत’ अकाल पुरख एक है और सतिगुरु की कृपा द्वारा मिलता है। हे सखी! प्यारे प्रभु की सिफत सलाह का गीत गाने से (मन में) ख़ुशी का रंग ढंग बन जाता है। उस कभी न मरने वाले खसम-प्रभु (का नाम) सुनने से मन में चाव पैदा होता है। (जब) बड़ी किस्मत से (किसी जिव-स्त्री के) मन में परमात्मा-पति का प्यार पैदा होता है, (तब वह जिव स्त्री उतावली हो जाती है) सारे गुणों के मालिक प्रभु-पति को कब मिला जा सकेगा। (उस को आगे यह उत्तर मिलता है- कि) अगर आत्मिक अड़ोलता में लीन रहें तो परमात्मा-पति मिल जाता है। (वह भाग्यवान जीव इस्त्री बार बार पूछती है) हे सखी! मुझे मति दे, कि किस प्रकार से प्रभु-पति से मिल सकूँ (हे सखी! बता) मैं दिन-रात खड़ी तेरी सेवा करुँगी। (गुरू नानक जी कहते हैं की )नानक (भी) बेनती करता है-(हे प्रभु! मेरे ऊपर) कृपा कर, (मुझे अपने) लड़ लगाई रख।१।