Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 15 जनवरी 2023

सलोकु मः १॥ घर ही मुंधि विदेसि पिरु नित झूरे सम्हाले ॥ मिलदिआ ढिल न होवई जे नीअति रासि करे ॥१॥ मः १ ॥ नानक गाली कूड़ीआ बाझु परीति करेइ ॥ तिचरु जाणै भला करि जिचरु लेवै देइ ॥२॥ पूउड़ी ॥ जिनि उपाए जीअ तिनि हरि राखिआ ॥ अम्रितु सचा नाउ भोजनु चाखिआ ॥ तिपति रहे आघाइ मिटी भभाखिआ ॥ सभ अंदरि इकु वरतै किनै विरलै लाखिआ ॥ जन नानक भए निहालु प्रभ की पाखिआ ॥२०॥

प्रभु-पति तो घर (भाव, हृदय) में ही है, पर, (जीव-स्त्री ) उस को परदेस में ( समझते हुए) सदा दूर से ही याद करती है, अगर नियत साफ़ करे तो ( प्रभु को ) मिलने में देर नहीं लगती ॥੧॥ हे नानक! वह बात-चित सब झूठी है जो (हरी से ) प्यार करने से दूर करती है। जब तक (हरी) देता है और (जीव) लेता है (भाव, जब तक जीव को कुछ मिलता रहता है) तब तक (हरी को जीव) अच्छा समझता हैं॥२॥ जिस हरी ने जीव पैदा किये हैं, उस ने उनकी रक्षा की है। जो जीव उस हरी का आत्मिक जीवन देने वाला सच्चा नाम (रूप) भोजन चखते हैं, और (इस नाम-रूप भोजन से) वह तृप्त हो जाते हैं उनकी और खाने की इच्छा मिट जाती है। सारे जीवों में एक प्रभु आप व्यापक है, परन्तु किसी विरले ने यह जाना है; और है नानक! (वह एक) दास प्रभु का पक्ष कर के खड़ा रहता है॥२०॥

Exit mobile version