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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 28 जून 2023

डहंसु महला १ घरु २ ॥
मोरी रुण झुण लाइआ भैणे सावणु आइआ ॥ तेरे मुंध कटारे जेवडा तिनि लोभी लोभ लुभाइआ ॥ तेरे दरसन विटहु खंनीऐ वंञा तेरे नाम विटहु कुरबाणो ॥ जा तू ता मै माणु कीआ है तुधु बिनु केहा मेरा माणो ॥ चूड़ा भंनु पलंघ सिउ मुंधे सणु बाही सणु बाहा ॥ एते वेस करेदीए मुंधे सहु रातो अवराहा ॥ ना मनीआरु न चूड़ीआ ना से वंगुड़ीआहा ॥ जो सह कंठि न लगीआ जलनु से बाहड़ीआहा ॥ सभि सहीआ सहु रावणि गईआ हउ दाधी कै दरि जावा ॥ अंमाली हउ खरी सुचजी तै सह एकि न भावा ॥ माठि गुंदाईं पटीआ भरीऐ माग संधूरे ॥ अगै गई न मंनीआ मरउ विसूरि विसूरे ॥ मै रोवंदी सभु जगु रुना रुंनड़े वणहु पंखेरू ॥ इकु न रुना मेरे तन का बिरहा जिनि हउ पिरहु विछोड़ी ॥ सुपनै आइआ भी गइआ मै जलु भरिआ रोए ॥ आए न सका तुझ कनि पिआरे भेजि न सका कोए ॥ आउ सभागी नीदड़ीए मतु सहु देखा सोए ॥ तै साहिब की बात जि आखै कहु नानक किआ दीजै ॥ सीसु वढे करि बैसणु दीजै विणु सिर सेव करीजै ॥ किउ न मरीजै जीअड़ा न दीजै जा सहु भइआ विडाणा ॥१॥३॥

हे बहन! सावन (का महीना) आ गया है (सावन की काली घटाएं देख के सुहाने) मोरों ने मीठे गीत आरम्भ कर दिए हैं (और नाचना शुरू कर दिया हैं)। (हे प्रभू!) तेरी ये सोहानी कुदरत मुझ जीव-स्त्री के लिए, जैसे, कटार है (जो मेरे अंदर विरहा की चोट कर रही है), फाही है, इसने मुझे तेरे दीदार की प्रेमिका को मोह लिया है (और मुझे तेरे चरणों की तरफ खींचती जा रही है)। (हे प्रभू!) तेरे इस सोहाने स्वरूप से जो अब दिख रहा है मैं सदके हूँ मैं सदके हूँ (तेरा ये स्वरूप मुझे तेरा नाम याद करा रहा है, और) मैं तेरे नाम से कुर्बान हूँ।

(हे प्रभू!) चुँकि तू (इस कुदरत में मुझे दिख रहा है) मैंने ये कहने का हौसला किया है (कि तेरी ये कुदरति सुहावनी है)। अगर कुदरति में तू ही ना दिखे तो ये कहने में क्या स्वाद रह जाए कि कुदरति सुहानी है?हे भोली स्त्री! (तूने पति को मिलने के लिए अपनी बाँहों में चूड़ा डाला,व और भी कई श्रृंगार किए, पर) हे इतने सारे श्रृंगार करने वाली नारी!अगर तेरा पति (फिर भी) औरों से ही प्यार करता रहा (तो इतने सारे श्रृंगारों के क्या लाभ? फिर) पलंघ से मार-मार के अपना चूड़ा तोड़ दे, पलंघ की बाहियां ही तोड़ डाल और अपनी सजाई हुई बाँहें ही तोड़ डाल क्योंकि ना उन बाँहों को सजाने वाला मनियार ही तेरा कुछ सवार सका, ना ही उसकी दी हुई चूड़ियाँ और कंगन किसी काम आए। जल जाएं वे (सजी हुई) बाँहें जो पति के गले से ना लग सकीं। (भाव, अगर जीव-स्त्री सारी उम्र धार्मिक भेष करने में ही गुजार दे, इसको धर्मोपदेश देने वाला भी अगर बाहरी भेष की तरफ ही उसे प्रेरित करता रहे, तो ये सारे उद्यम व्यर्थ चले गए।

क्योंकि, धार्मिक वेश-भूसा से ईश्वर को प्रसन्न नहीं किया जा सकता। उससे तो सिर्फ आत्मिक मिलाप ही हो सकता है)।(प्रभू-चरणों में जुड़ने वाली) सारी सहेलियाँ (तो) प्रभू पति को प्रसन्न करने के यतन कर रही हैं (पर, मैं जो निरे दिखावे के ही धर्म-वेष करती रही) मैं कर्म जली किसके दर पर जाऊँ? हे सखी! मैं (इन धर्म-भेषों पर ही टेक रख के) अपनी ओर से तो बड़ी अच्छी करतूत वाली बनी बैठी हूँ। पर, (हे) प्रभू पति! किसी एक भी गुण के कारण मैं तुझे पसंद नहीं आ रही। मैं सवार-सवार के चोटियाँ गूँदती हूँ, मेरी पटियों के चीर में सिंदूर भी भरा जाता है, पर तेरी हजूरी में मैं फिर भी प्रवान नहीं हो रही, (इस वास्ते) झुर झुर के मर रही हूँ।(प्रभू-पति से विछुड़ के) मैं इतनी दुखी हो रही हूँ (कि) सारा जगत मेरे पर तरस कर रहा है, जंगल के पक्षी भी (मेरी दुखी हालत पर) तरस कर रहे हैं।

सिर्फ ये मेरे अंदर का विछोड़ा ही है जो तरस नहीं करता (जो मेरी खलासी नहीं करता), इसने मुझे प्रभू-पति से विछोड़ा हुआ है।(हे पति!) मुझे तू सपने में मिला (सपना खत्म हुआ, और तू) फिर चला गया, (विछोड़े के दुख में) मैं आूंसू भर के रोई। हे प्यारे! मैं (निमाणी) तेरे पास पहुँच नहीं सकती, मैं (गरीब) किसी को तेरे पास भेज नहीं सकती (जो मेरी हालत तुझे बताए। नींद के आगे ही तरले करती हूँ-) हे सौभाग्यशाली सुंदर नींद! तू (मेरे पास आ) शायद (तेरे द्वारा ही) मैं अपने पति-प्रभू का दीदार कर सकूँ।

हे नानक! (प्रभू-दर पर) कह– हे मेरे मालिक! अगर कोई गुरमुखि मुझे तेरी कोई बात सुनाए तो मैं उसके आगे कौन सी भेटा रखूँ! अपना सिर काट के मैं उसके बैठने के लिए आसन बना दूँ (भाव,) स्वै भाव दूर करके मैं उसकी सेवा करूँ।जब हमारा प्रभू-पति (हमारी मूर्खता के कारण) हमसे अलग हो जाए (तो उसे दुबाराअपना बनाने के लिए यही एक तरीका है कि) हम स्वैभाव मार दें, और अपनी जिंद उस पर सदके कर दें।1।3।

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