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जन्माष्टमी: नंद के घर आनंद भयो जय कन्हैया लाल की

कृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को मनाया जाता है। वैसे तो जन्माष्टमी पर देशभर में सभी स्थानों पर धूम रहती है लेकिन मथुरा, वृंदावन, गोकुल और द्वारिका में विशेष आयोजन होते हैं। जन्माष्टमी को सबसे रोचक अंदाज में महाराष्ट्र में मनाया जाता है। संध्या समय ‘मटकी फोड़’ कार्यक्रम आकर्षण का केंद्र होता है। मंदिरों में इस दिन विशेष भजन-पूजन आयोजित करके दही-माखन-मिश्री का प्रसाद बांटा जाता है।

श्रीकृष्ण जन्म कथा
द्वापर युग के अंत में मथुरा नगरी में उग्रसेन नामक राजा राज्य करते थे। उनका पुत्र कंस परम प्रतापी किंतु अत्यंत निर्दयी एवं अत्याचारी था। जब अपनी छोटी बहन देवकी का वसुदेव से विवाह करके कंस उसे विदा कर ही रहा था कि तभी भयंकर गर्जना के साथ आकाशवाणी हुई, ‘हे कंस! तेरे पापों और अत्याचारों का घड़ा भर गया है और तेरी बहन देवकी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा काल होगा।’ आकाशवाणी सुनकर कंस को मौत का डर सताने लगा, अत: उसने देवकी-वसुदेव को मथुरा के कारागार में बंद कर दिया। बारी-बारी से वह देवकी के सात पुत्रों की हत्या करता रहा।

पूर्व निश्चित समय भाद्रपद की अष्टमी को रात्रि १२ बजे जब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप में कारागार में जन्म लिया तो चारों ओर दिव्य प्रकाश फैल गया। उसी समय आकाशवाणी हुई कि शिशु को जल्द से जल्द गोकुल ग्राम में नंद बाबा के घर पहुंचाया जाए और नंद बाबा की कन्या को कंस को सौंप दिया जाए। जैसे ही बालक श्रीकृष्ण को वसुदेव ने गोद में लिया, उनकी बेड़ियां खुल गई।

देवयोग से सभी पहरेदार सो गए और दरवाजों के ताले स्वत: खुल गए। मूसलाधार बारिश में वसुदेव श्रीकृष्ण को लेकर निकल पड़े। मार्ग में यमुना जी भी श्रीकृष्ण के चरण स्पर्श के लिए उफनती चली आ रही थीं। चरण स्पर्श के बाद यमुना जी ने वसुदेव को रास्ता दिया। गोकुल पहुंचकर वसुदेव ने यशोदा के पास श्रीकृष्ण को सुला दिया और वहां से उनकी पुत्री को लेकर वापस कारागार में आ गए।

जब पहरेदारों ने कंस को आठवें गर्भ के जन्म की सूचना दी तो वह तत्काल नवजात शिशु को मारने कारागार पहुंचा परन्तु जैसे ही मारने के लिए उसने बालिका को उठाया, वह देवी योगमाया के रूप में प्रकट हुई और कहा, ‘कंस, तेरा संहारक गोकुल पहुंच चुका है और जल्द ही तेरा नाश करेगा।’ कंस ने अपने कई राक्षसों और दैत्यों को श्रीकृष्ण को मारने के लिए भेजा किंतु कोई भी श्रीकृष्ण को मार न पाया, बल्कि दैत्य मारे गए। लीलाएं करते हुए अंतत: श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर दिया और प्रजा को आतंक व भय से मुक्ति दिलाई।

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