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पुत्र की दीर्घायु के लिए है जीवित्पुत्रिका व्रत, जानिए इसके महत्व के बारे में

इस व्रत को पुत्रवती स्त्रियां पुत्र की रक्षा के उद्देश्य से करती हैं। इस व्रत के करने से उन्हें पुत्र-शोक नहीं होता। इस व्रत को स्त्री-समाज में बहुत महत्व तथा सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है। इस व्रत को स्त्रियां निर्जल रहकर करती हैं। चौबीस घंटे के उपवास के बाद ही व्रत का पारण करती हैं। इस व्रत के लिए सप्तमी के दिन उड़द की दाल भिगोई जाती है। कुछ लोग उसमें गेहूं भी मिला देते हैं। अष्टमी के दिन प्रात:काल व्रती स्त्रियां उनमें से कुछ दाने साबुत ही निगल जाती हैं। इसके बाद न कुछ खाती ही हैं, न ही कुछ पीती हैं। इस दिन उड़द तथा गेहूं के दान का बड़ा महात्म्य है। यह व्रत काम्य है।

कथा: महाभारत के युद्ध के पश्चात पांडवों की अनुपस्थिति में कृत वर्मा तथा कृपाचार्य के साथ अश्वत्थामा ने शिविर में प्रवेश करके सैनिकों को मार डाला। अश्वत्थामा ने सोए हुए तैपदी पुत्रों को पांडव समझा और उनके सिर काट लिए। दूसरे दिन अर्जुन ने केशव को सारथि बनाकर अश्वत्थामा का पीछा किया और बन्दी बनाया। अश्वत्थामा ने सोए हुए द्रोपदी पुत्रों को पांडव समझा और उनके सिर काट लिए। दूसरे दिन अर्जुन ने केशव को सारथी बनाकर अश्वत्थामा का पीछा किया और बंदी बनाया। धर्मराज युधिष्ठिर के आदेश तथा श्रीकृष्ण के परामर्श से सिर की मणि लेकर तथा केश मूंडकर कुरुपुत्र को बंधन से छुड़ा दिया।

अश्वत्थामा ने अपमान का बदला लेने के भाव से अमोघ अस्त्र का प्रयोग पांडवों की वंशधर उत्तरा के गर्भ पर किया। पांडव इस अस्त्र का प्रतिकार न कर सके। उन्होंने केशव की शरण पकड़ी। भगवान ने सूक्ष्म रूप से उत्तरा के गर्भ में प्रवेश करके गर्भ की रक्षा की। किन्तु जब पुत्र पैदा हुआ तो वह मृतकप्राय: था। भगवान ने उसे प्राण दिया। वही पुत्र पांडव वंश का भावी कर्णधार परीक्षित हुआ। परीक्षित को इस जीवनदान देने के कारण इस व्रत का नाम ‘जीवत्पुत्रिका’ पड़ा। उड़दों का निगलना श्रीकृष्ण का सूक्ष्म रूप में उदर प्रवेश माना जाता है।

व्रत का महत्व: इस दिन प्रदोषकाल में पुत्रवती महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। जो स्त्री कथा श्रवण करती है वह पुत्र- पौत्रों का सुख प्राप्त करती है। जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा की धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि से पूजा-अर्चना की जाती है। पुत्र की दीर्घायु, अरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियां इस व्रत का अनुष्ठान करती हैं। कथा श्रवण कर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देनी चाहिए।

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