जिस प्रकार जल की धारा को बहते रहना है उसी प्रकार जीवन की धारा को भी चलते रहना है: गुरु देव श्री श्री रविशंकर

आर्ट ऑफ लिविंग के अध्यक्ष गुरूदेव श्री श्री रविशंकर के एक संदेश को जम्मू में साधकों को संस्थान की जम्मू कश्मीर ईकाई के संयोजक अजय कपूर ने सुनाया है और कहा है कि श्री श्री रवि शंकर बताते है कि एक नदी को बहने के लिए दो किनारों की आवश्यकता होती है। बाढ़ तथा बहती.

आर्ट ऑफ लिविंग के अध्यक्ष गुरूदेव श्री श्री रविशंकर के एक संदेश को जम्मू में साधकों को संस्थान की जम्मू कश्मीर ईकाई के संयोजक अजय कपूर ने सुनाया है और कहा है कि श्री श्री रवि शंकर बताते है कि एक नदी को बहने के लिए दो किनारों की आवश्यकता होती है। बाढ़ तथा बहती हुई नदी में यह अंतर है कि बहती हुई नदी का पानी एक विशेष दिशा में बहता है जबकि बाढ़ की अवस्था में पानी बिना किसी क्रम के दिशाविहीन होकर बहता है। इसी प्रकार हमारे जीवन में यदि ऊर्जा को कोई दिशा नहीं प्रदान की जाती तो यह दिग्भ्रमित हो जाती है। जीवन की ऊर्जा के प्रवाह के लिए एक दिशा की आवश्यकता होती है।

जब तुम प्रसन्न होते हो तो तुम्हारे अन्दर अत्यधिक जीवन ऊर्जा होती है लेकिन जब जीवन ऊर्जा यह नहीं जानती है कि कहां और कैसे जाना है तब यह अवरूद्ध होकर जड़ हो जाती है। जिस प्रकार जल की धारा को बहते रहना है उसी प्रकार जीवन की धारा को भी चलते रहना है। जीवन ऊर्जा को एक दिशा में चलने के लिए एक बचनबद्धता आवश्यक है। जीवन बचनबद्धता के साथ चलता है। एक विद्यार्थी किसी स्कूल या कालेज में एक बचनबद्धता के साथ प्रवेश लेता है। तुम एक डाक्टर के पास एक बचनबद्धता के साथ जाते हो कि डाक्टर जो कुछ उपचार बताता है उसको सुनते हो या उसके द्वारा दी गई औषधि को लेते हो। बैंक एक बचनबद्धता के साथ कार्य करते है। सरकार भी एक बचनबद्धता के साथ कार्य करती है।

यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि एक परिवार भी बचनबद्धता के साथ चलता है। मां-बच्चे के साथ प्रतिबद्ध है व बच्चा अपने मां-बाप के प्रति प्रतिबद्ध है। पति पत्नी के साथ और पत्नी पति के साथ बचनबद्ध है। जीवन के किसी भी क्षेत्र में चाहे वह प्यार हो या व्यवसाय हो या मित्रता हो, बचनबद्धता अवश्य होती है। जितनी अधिक बचनबध्दता का तुम वहन करते हो, उतनी ही अधिक शक्ति तुम्हें उस बचनबद्वता का वहन करने के लिए प्राप्त होती है। छोटी प्रतिबद्धता तुम्हें घुटन देती है क्योंकि तुम्हारी क्षमता बहुत अधिक है, लेकिन तुम एक छोटे से छिद्र में फंसे हुए हो।

जब तुम्हारे पास दस कार्य करने के लिए होते है और यदि एक कार्य गलत हो जाता है, तो तुम बाकी कार्यों को करते रह सकते हो। लेकिन यदि तुम्हारे पास केवल एक ही कार्य करने के लिए होता है और वह अगर गलत हो जाता है तो तुम उसी से चिपके रह जाते हो। प्राय: हम यह सोचते हैं कि पहले हमारे पास कार्य के स्रोत हों, तब हम कोई भी कार्य करने के लिए बचनबध्द होंगे। वास्तव में यह ऐसा नहीं है। तुम जितना ही बड़ा कार्य करने की बचनबद्धता करोगे, उतने ही बड़े स्रोत स्वमेय ही प्राप्त हो जाएंगे।

जब तुम्हारे अन्दर किसी कार्य को करने का विचार आता है तो जब भी और जितना भी आवश्यक होता है उसके लिए स्रोत तुमको मिल जाते है। जो तुम कर सकते हो उसको करने में तुम्हारा कोई विकास नहीं होता है। अपनी क्षमता के बाहर हाथ-पैर फैलाने से तुम्हारा विकास होता है। यदि तुममें अपने शहर की देखभाल करने की क्षमता है और तुम यह कार्य करते हो, तो यह कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन यदि तुम इसको और अधिक विस्तृत करते हुए अपने पूरे प्रदेश की देखभाल करने या बचनबद्धता करते हो तो तुम्हें उतनी ही अधिक शक्ति प्राप्त होती है।

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