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आज रखा जा रहा है कालाष्टमी व्रत, इस विधि और शुभ मुहूर्त में करें काल भैरव की पूजा

आज पौष माह की मासिक कालाष्टमी व्रत मनाया जा रहा है। आज के दिन व्रत रखने और काल भैरव की पूजा करने का बहुत अधिक महत्व माना गया है। माना जाता है कि काल भैरव भगवान शिव के अंश हैं। मान्यता यह भी काल भैरव रक्षक और दंडनायक की भूमिका का निर्वाह करते हैं। जो लोग अधर्म और पाप करते हैं, उन लोगों को बाबा भैरवनाथ दंडित करते हैं, इस वजह से इनको दंडपाणि भी कहा जाता है। बाबा भैरव नाथ को तंत्र मंत्र के देवता माना जाता है। माना जाता है कि इनके आशीर्वाद से ग्रह दोष, रोग, कष्ट आदि से मुक्ति मिलती है। आइए जानते है कालाष्टमी व्रत के पूजा मुहूर्त और विधि के बारे में :

मासिक कालाष्टमी 2022 मुहूर्त
पौष माह कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि का प्रारंभ: आज, शुक्रवार, 01:39 एएम से
पौष माह कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि का समापन: कल, शनिवार, 03:02 एएम पर
कालाष्टमी निशिता पूजा मुहूर्त: रात 11 बजकर 50 मिनट से देर रात 12 बजकर 44 मिनट तक
अभिजित मुहूर्त: सुबह 11 बजकर 56 मिनट से दोपहर 12 बजकर 37 मिनट तक
प्रीति योग: आज सुबह 07 बजकर 47 मिनट तक
आयुष्मान योग: सुबह 07 बजकर 47 मिनट से पूर्ण रात्रि तक

कालाष्टमी व्रत और पूजा विधि
1. आज प्रात: स्नान के बाद सूर्य देव को जल अर्पित करें और उसके बाद मासिक कालाष्टमी व्रत और पूजा का संकल्प करें.
2. दिनभर फलाहार पर रहें और रात्रि के मुहूर्त में बाबा भैरवनाथ की पूजा करें. इसके लिए आप किसी भैरव मंदिर में जाएं या फिर घर पर ही उनको पूजन कर लें.
3. भगवान शिव और माता पार्वती के साथ काल भैरव की तस्वीर पूजा स्थान पर स्थापित करें. फिर तीनों को क्रमश: अक्षत्, फूल, फल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें. काल भैरव के लिए सरसों के तेल का चौमुखा दीपक जलाएं.
4. अब आप बाबा कालभैरव को इमरती, पानी, नारियल आदि का भोग लगाएं. फिर भैरव चालीसा का पाठ करें. उसके बाद उनकी आरती करें. भैरव बाबा से अपने दुखों को दूर करने की प्रार्थना करें.
5. सबसे अंत में आप भैरव बाबा के वाहन कुत्ते को रोटी और गुड़ खिलाएं. अगले दिन सुबह स्नान-दान के बाद आप पारण करके व्रत को पूरा करें.

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवार शिव के क्रोध से भैरव नाथ की उत्पत्ति हुई थी, जिन्होंने ब्रह्म देव का एक सिर काट दिया. उस समय ब्रह्म देव क्रोध से जल रहे थे और शिव जी का अपमान कर रहे थे. जहां पर मां दुर्गा के शक्तिपीठ हैं, वहां पर काल भैरव रक्षक के रूप में विद्यमान हैं. माता रानी के दर्शन के बाद काल भैरव का दर्शन करना अनिवार्य होता है, अन्यथा वह पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है.

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