जानिए हिंदुओं के सबसे बड़े तीर्थ प्रयागराज की महिमा से जुड़ी कुछ बातें

प्रयाग हिंदुओं का सबसे बड़ा तीर्थ है। जीवन में मनुष्य को एक बार प्रयाग की यात्रा करनी चाहिए। प्राकृतिक योग से यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का मेल होता है। हालांकि सरस्वती नदी तो अदृश्य रूप में बहती है मगर गंगा, यमुना प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देती हैं। सरस्वती नदी का पानी कहां से.

प्रयाग हिंदुओं का सबसे बड़ा तीर्थ है। जीवन में मनुष्य को एक बार प्रयाग की यात्रा करनी चाहिए। प्राकृतिक योग से यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का मेल होता है। हालांकि सरस्वती नदी तो अदृश्य रूप में बहती है मगर गंगा, यमुना प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देती हैं। सरस्वती नदी का पानी कहां से आता है और किस रूप में वह दोनों नदियों के पानी में मिल जाता है यह शोध का विषय है। बहरहाल हिंदुओं की दृढ़ आस्था का यह नदियों का मेल लाखों श्रद्घालुओं को प्रतिवर्ष अपनी ओर आस्था और विश्वास के साथ खींच लाता है। प्रयाग वह स्थान है जहां प्रतिदिन भोर की बेला से सूर्यास्त तक धार्मिक क्रियाएं संपन्न होती रहती हैं।

इन तीनों नदियों का पानी साफ-सुथरा व स्वच्छ है। हालांकि पानी की गहराई चार-पांच फुट अवश्य है मगर उसमें गिरा हुआ सिक्का भी ऊपर से स्पष्ट दिखाई देता है। तीनों नदियों का यह मेल स्थल प्रयागराज के नाम से जाना जाता है जो हिंदुओं का प्राचीनतम तीर्थ है। ऋग्वेद दशम मण्डल की एक ऋचा में यह उल्लेख मिलता है कि जहां श्वेत व श्यामवर्ण की दो नदियों का मेल होता है और उस स्थान पर जो मनुष्य स्नान करते हैं वो स्वर्ग को प्राप्त होते हैं और उसी के साथ यह उल्लेखित है कि इन नदियों के मेल स्थल पर जो मनुष्य अपनी देह का त्याग करता है वह सभी बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष का भागी होता है।

अग्नि पुराण, पदम पुराण, कर्म पुराण, मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, महाभारत तथा वेदों में तीर्थराज प्रयाग का प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष महत्व प्रतिपादित हुआ है। आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य प्रयाग तीर्थ पधारे थे और उन्होंने इस अवसर पर साधु-संतों को एकजुट होकर अखाड़े इत्यादि बनाकर शाही स्नान करने की सलाह दी थी। महाभारत के आदि पर्व में प्रयागराज तीर्थ को सोम, वरुण तथा प्रजापति की जन्मभूमि बताया गया है तथा इस प्रकार से वन पर्व में भी पुल्स्त्य, धौम्य ऋषि की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में उल्लेख किया गया है कि प्रयागराज में सभी तीर्थों, देवगणों और ऋषिमुनियों का निवास है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भी यह कहा गया है कि माघ महीने में तीन करोड़ दस हजार तीर्थ प्रयाग में एकत्र होते हैं।

रामायण में यह उल्लेख मिलता है कि प्रयागराज तीर्थ के चारों तरफ वन था और बीच में गंगा, यमुना की धाराएं और भारद्वाज मुनि का आश्रम था। शोधार्थियों का यह मानना है कि वर्तमान में जहां भारद्वाज मुनि का आश्रम है वहीं प्राचीन प्रयाग था और धीरे-धीरे इस स्थान में भौगोलिक परिवर्तन हुआ है। आज की भौगोलिक स्थिति प्राचीनकाल के मुकाबले भिन्न है। जिस प्रकार से सूर्यग्रहण के अवसर पर कुरुक्षेत्र में स्नान करने का महत्व है और उससे भी अधिक काशी में गंगा स्नान करने का महत्व है। काशी से भी कई गुणा अधिक प्रयागराज तीर्थ में स्नान करना पुण्यदायी माना गया है। कारण यह कि यहां गंगा पश्चिमी वाहिनी होकर बहती है और तीन नदियों का यह मेल स्थल है। यह वह पवित्र स्थान है जहां गंगा, यमुना के छ: तट हैं।

इन छ: तटों में से दो तट गंगाजी को दो तट यमुना जी के तथा दो तट दोनों नदियों के मिश्रित हैं। इसलिए यहां पर स्नान करने वाले प्राणी को धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहां गौ भूमि, तिल, सोना, घी, वस्त्र, अन्न, गुड़, चांदी, नमक दान करने का बड़ा महत्व है। इसी प्रकार से ग्राम दान, कन्यादान, जलदान, विद्यादान, तुला दान, स्वर्ण दान, अश्व दान, पृथ्वी दान, फल दान, शैया दान, गजदान, तिल पात्र दान, पुस्तक दान तथा पान दान, मूंगा, मोती, भूषण आदि का दान बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। करोड़ों हिंदुओं की आस्था का यह तीर्थ आज तक आर्यावर्त क्षेत्र के अनेक उत्थान व पतन देख चुका है।

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