गुरु गोरखनाथ को गोरक्षनाथ भी कहा जाता है। वह 11वीं से 12वीं शताब्दी तक नाथ योगी थे। उनके नाम पर एक शहर गोरखपुर भी है। नाथ साहित्य का प्रारम्भ गोखखनाथ धरा से हुआ। गोरखपंथी साहित्य के अनुसार आदिनाथ को ही भगवान शिव माना जाता है। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ, जिन्होंने शिव की परंपरा को सही ढंग से आगे बढ़ाया। नाथ सम्प्रदाय में ऐसा माना जाता है। गुरु मत्स्येन्द्रनाथ ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने शिव की परंपरा को सही ढंग से आगे बढ़ाया।
गोरखनाथ के जन्म को लेकर विद्वानों में मतभेद हैं। राहुल सांकृत्यायन इनका जन्म 845 ई. की 13वीं शताब्दी मानते हैं। नाथ परंपरा की शुरुआत बहुत पुरानी है, लेकिन गोरखनाथ से इस परंपरा को सुव्यवस्थित विस्तार मिला। गोरखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रनाथ थे। दोनों को 84 प्रांतों में प्रमुख माना जाता है।
गोरखनाथ से पहले कई संप्रदाय थे, जिनका नाथ संप्रदाय में विलय हो गया। इनके संप्रदाय में शैव और शास्त्रियों के अतिरिक्त बौद्ध, जैन और वैष्णव योग मार्गी भी आये।
गोरखनाथ ने योग में योग के कार्य और अपनी रचनाओं को अधिक महत्व दिया है। इनके माध्यम से उन्होंने हठ योग का महत्व सिखाया। गोरखनाथ शरीर और मन के साथ प्रयोग करते रहते थे।