हर घर में किसी न किसी शुभ अवसर पर मांगलिक कार्य संपादित किए जाते हैं। मंदिरों में इष्टदेव की आराधना हो या पूजा या फिर वैदिक मंत्रों का पाठ, इन सब में फूलों को जरूर शामिल किया जाता है। इष्टदेव की पूजा के समय उन पर फूल चढ़ा देने मात्र से ही हम पुण्य के भागी नहीं बन जाते क्योंकि प्रत्येक देवी-देवता का अपना पसंदीदा पुष्प होता है जिसे विधि-विधान के अनुसार उन पर श्रद्धा के साथ अर्पित किया जाता है। देव पूजन विधि के अनुसार यदि गलत विधि से अप्रिय फूल किसी देवता को चढ़ा दिया जाए तो अनिष्ट भी हो सकता है। इसलिए पुष्पों के बारे में यह जान लेना आवश्यक हो जाता है कि कौन सा पुष्प किस देवता को चढ़ाया जाना चाहिए। विभिन्न देवी-देवताओं के उनके अपने विहित एवं निषिद्ध पुष्प-पत्र होते हैं। वे पुष्प-पत्र भगवान पर नहीं चढ़ाए जाते हैं जो अपवित्र बर्तन या स्थान पर रखे गए हों। कीड़े लगे, जमीन पर गिरे, अनखिले, कली एवं सड़े-गले या बासी पुष्प भी निषिद्ध माने जाते हैं। कुम्हलाया हुआ, नाक से सूंघा हुआ, अंग से स्पर्श किया हुआ या किसी अन्य देवता पर पहले से चढ़ाया गया पुष्प भी निषिद्ध माना जाता है। धर्मशास्त्रों के अनुसार अलग-अलग देवी-देवताओं की उपासना के लिए अलग-अलग पुष्प विहित हैं।
भगवान गणेश: हिंदू धर्म में कोई भी मांगलिक कार्य सर्वप्रथम गणपति की पूजा से आरंभ किया जाता है। वैसे तो गणेशजी को प्रकृति प्रदत्त सभी पत्र-पुष्प चढ़ाए जा सकते हैं लेकिन पद्म पुराण, आचार्यरत्न एवं कार्तिक माहात्म्य के अनुसार गणपति पर तुलसी पत्र नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। गणेश पुराण के अनुसार इनकी पूजा में सफेद या हरी दूर्वा अवश्य चढ़ानी चाहिए। दूर्वा तोड़ते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इनकी फुनगी में तीन या पांच पत्तियां अवश्य रहें।
भगवान शिव: भगवान शिव पर फूल चढ़ाने का बहुत अधिक महत्व है। इन पर केतकी एवं केवड़ा के फूलों को छोड़कर सभी तरह के पुष्प चढ़ाए जा सकते हैं।
भगवान विष्णु: भगवान विष्णु को कमल का पुष्प अति प्रिय है। इसके साथ ही इन्हें गुलाब, बेला, अशोक, केवड़ा, मालती, मौलसिरी, सेफाली, नवमल्लिका आदि के पुष्प भी प्रिय हैं लेकिन धर्मशास्त्रों का कहना है कि जितना पुण्य इन सभी फूलों को चढ़ाने से प्राप्त होता है, उससे कई गुना पुण्य एकमात्र मंजरीयुक्त तुलसी पत्र के चढ़ा देने से होता है।
भगवान सूर्य: भगवान आदित्य अर्थात् सूर्य की पूजा के लिए भविष्य पुराण में बताया गया है कि यदि भगवान सूर्य को आक का एक फूल अर्पित कर दिया जाए तो सोने की दस अशर्फियां चढ़ाने जितना पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा गुड़हल, कनेर, कुश, शमी, मौलसिरी, केसर, मालती, अरूषा, अशोक, पलाश आदि के पुष्पों को भी सूर्य पूजा के लिए चयनित किया जा सकता है।
मां दुर्गा: नवरात्र में दुर्गा उपासना का महत्व काफी बढ़ जाता है। भगवान शिव की पूजा में जो फूल चढ़ाए जाते हैं, वे सभी फूल मां भगवती को चढ़ाए जा सकते हैं। जितने भी लाल पुष्प हैं, वे सभी आदिशक्ति मां दुर्गा को प्रिय हैं। साथ ही श्वेत सुगंधित पुष्प भी इन्हें चढ़ाए जा सकते हैं। शास्त्र में उल्लेख है कि केवड़ा, केतकी, आक और मदार को छोड़कर इनकी पूजा में सभी तरह के शुद्ध पुष्पों का चयन किया जा सकता है। सच पूछा जाए तो परमपिता परमेश्वर पर अर्पित किए जाने वाले सभी तरह के जल, पुष्प एवं अन्य पूजन सामग्री केवल मन को शांति पहुंचाने का माध्यम हैं क्योंकि उनकी शक्ति को हम देख नहीं सकते, स्पर्श नहीं कर सकते, मात्र अपने अंत:करण में महसूस कर सकते हैं। जो समस्त चराचर का स्वामी है, दाता है, उसे किसी भी वस्तु की आवश्यकता नहीं। वह तो भाव का भूखा है। संसार में ऐसा कोई दिव्य पदार्थ नहीं है जिससे परमेश्वर की पूजा की जा सके।महान संत रविदासजी कहते हैं, ‘हे ईश्वर, मैं तुझ पर क्या अर्पित करूं, दूध चढ़ाऊं तो वह भीबछड़े का जूठा है और शहद मक्खियों का। पुष्प पर तो भवरे पहले से ही मंडरा चुके हैं। चंदन भी तो नहीं चढ़ा सकता क्योंकि उस पर तो सर्पों का वास रहता है। ऐसे में एक हमारा मन ही तो है जिसे मैं आपके चरणों में अर्पित कर सकता हूं।’ इसलिए सभी फूलों से बढ़कर व्यक्ति का एकमात्र मन है जिसे वह नि:स्वार्थ भाव से प्रभु के श्रीचरणों में चढ़ा सकता है। भगवान के प्रिय पुष्प प्