जानिए क्यों इतना प्रसिद्ध है बेतवा का भोलेनाथ मंदिर

वैसे तो पूरे देश में चप्पे-चप्पे पर शिवमंदिरों की भरमार देखने को मिल जाएगी लेकिन मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के मनोरम व प्राकृतिक विशालकाय नदीनुमा घाटी का सौन्दर्य देखते ही बनता है जहां देश के विशालतम शिवलिंग से ख्याति अर्जित कर चुका शिवमंदिर है। भोपाल से 28 किलोमीटर दूर इस मंदिर की स्थापना बेतवा.

वैसे तो पूरे देश में चप्पे-चप्पे पर शिवमंदिरों की भरमार देखने को मिल जाएगी लेकिन मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के मनोरम व प्राकृतिक विशालकाय नदीनुमा घाटी का सौन्दर्य देखते ही बनता है जहां देश के विशालतम शिवलिंग से ख्याति अर्जित कर चुका शिवमंदिर है। भोपाल से 28 किलोमीटर दूर इस मंदिर की स्थापना बेतवा नदी के तट पर परमार वंश के धार के राजा भोजदेव ने ईस्वी सन 10101055 में करवाई थी। यह भोजेश्वर महादेव मंदिर के नाम से विख्यात है तो बेतवा के भोलेनाथ भी कहलाते हैं। जनश्रुतियों के मतानुसार इस मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया था जिसे बाद में राजा भोज ने जीर्णोद्धार करवा विशाल मंदिर का रूप दिया।

यहां के निवासी यह भी बताते हैं कि कुंती ने कर्ण को यहां बहने वाली बेतवा नदी में बहा दिया था जो उस समय वेत्रवती नदी के नाम से जानी जाती थी। 106 फीट लम्बे, 77 फीट चौड़े और 17 फीट ऊंचे इस मंदिर की शिवलिंग की ऊंचाई 22 फीट है । इस विशालकाय शिवलिंग को एक ही पत्थर से काटकर भव्य रूप दिया गया है। मंदिर की संरचना देखकर यह 11वीं से 13वीं सदी की स्थापत्य कला से निर्मित दिखाई देता है। भोजेश्वर महादेव मंदिर पहुंचने के लिए सड़क व कच्चे रास्तों को पार करना पड़ता है। इस रास्ते में एक छोटी बरसाती नदी भी है जिसके कई मोड़ हैं। भोजपुर में एक जैन मंदिर भी है तो दो पार्श्वनाथ की भी प्रतिमाएं हैं।

भोजपुर के निकट एक पानी का डैम भी था जिसे राजा भोज ने ही बनवाया था। इस डैम को मालवा के होशांग शाह ने बाद में तुड़वा दिया था। डैम के दूसरी ओर पार्वती मंदिर भी है जहां पहुंचने के लिए बेतवा नदी को पार करना पड़ता है। यहां का प्राकृतिक सौन्दर्य व विशालकाय पत्थरों का कटाव सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र है। शिवरात्रि के दौरान यहां भक्तों की भारी भीड़ जुटती है जो शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने हेतु आते हैं। बेतवा के भोलेनाथ मंदिर का रख रखाव व सुरक्षा की जिम्मेदारी भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की है। रायसेन के इस शिवमंदिर आने के लिए दर्शनार्थियों को अपने वाहन एक-दो किलोमीटर मंदिर की चढ़ाई चढ़ने से पूर्व नीचे छोड़ने पड़ते हैं।

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