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हृदय में होता है भगवान श्री कृष्ण जी का वास

कई बार श्रीकृष्ण जी दुविधा में पड़ गए। लोगों की बढ़ती साधना वृत्ति से वह प्रसन्न तो थे पर इससे उन्हें व्यावहारिक मुश्किलें आ रही थीं। कोई भी मनुष्य जब मुसीबत में पड़ता, तो श्री कृष्ण जी के पास भागा- भागा आता और उन्हें अपनी परेशानियां बताता। उनसे कुछ न कुछ मांगने लगता। श्री कृष्ण जी इससे दुखी हो गए थे। अंतत: उन्होंने इस समस्या के निराकरण के लिए देवताओं की बैठक बुलाई और बोले, ‘देवताओ, मैं मनुष्य की रचना करके कष्ट में पड़ गया हूं। कोई न कोई मनुष्य हर समय शिकायत ही करता रहता है जिससे न तो मैं कहीं शांतिपूर्वक रह सकता हूं, न ही तपस्या कर सकता हूं।

आप लोग मुझे कृपया ऐसा स्थान बताएं जहां मनुष्य नाम का प्राणी कदापि न पहुंच सके।’ श्री कृष्ण जी के विचारों का आदर करते हुए देवताओं ने अपने-अपने विचार प्रकट किए। गणेश जी बोले, ‘आप हिमालय पर्वत की चोटी पर चले जाएं।’ श्री कृष्ण जी ने कहा, ‘यह स्थान तो मनुष्य की पहुंच में है। उसे वहां पहुंचने में अधिक समय नहीं लगेगा।’ इंद्रदेव ने सलाह दी कि वह किसी महासागर में चले जाएं। वरु ण देव बोले, ‘आप अंतरिक्ष में चले जाईये।’ श्री कृष्ण जी ने कहा, ‘एक दिन मनुष्य वहां भी अवश्य पहुंच जाएगा।’ श्री कृष्ण जी निराश होने लगे थे।

वह मन ही मन सोचने लगे, ‘क्या मेरे लिए कोई भी ऐसा गुप्त स्थान नहीं है, जहां मैं शांतिपूर्वक रह सकूं।’ अंत में सूर्य देव बोले, ‘आप ऐसा करें कि मनुष्य के हृदय में बैठ जाएं। मनुष्य इस स्थान पर आपको ढूंढने में सदा उलझा रहेगा।’ श्री कृष्ण जी को सूर्य देव की बात बहुत पसंद आ गई। उन्होंने ऐसा ही किया। वह मनुष्य के हृदय में जाकर बैठ गए। उस दिन से मनुष्य अपना दुख व्यक्त करने के लिए श्री कृष्ण जी को ऊपर ,नीचे, दाएं, बाएं, आकाश, पाताल में ढूंढ रहा है पर वह मिल नहीं रहे। मनुष्य अपने भीतर बैठे हुए देवता को नहीं देख पा रहा है।

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