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मां त्रिपुरमालिनी धाम जहां श्रद्धा से झुकता है सिर, पढ़ें इतिहास

जालंधर : जिन पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों के कारण जालंधर का नाम विश्व के मानचित्र पर अंकित है, उनमें 51 शक्तिपीठों में से एक श्री देवी तालाब मंदिर स्थित मां त्रिपुरमालिनी धाम भी है। श्री देवी तालाब मंदिर परिसर में स्थित पावन सरोवर के तट पर मां त्रिपुरमालिनी का पावन मंदिर है। अत्यन्त मनोरम दृश्यावली में स्थित पीपल के वृक्ष के नीचे इस पावन धाम पर जो भक्तजन सच्चे मन से श्रद्धा लेकर आता है, उसको मन-वांछित फल की प्राप्ति होती है।

ऐतिहासिक तथ्य :

एक समय प्रजापति दक्ष ने तप किया। महामाया ने दक्ष प्रजापति के घर जन्म लिया और सती नाम से वह माता-पिता के घर में पलने लगीं। राजा सुयोग्य कन्या को पाकर अपने आपको धन्य समझता था। तत्पश्चात् उमा नाम धारण कर उस कन्या ने भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव ने सती को दर्शन दिए एवं सती के आग्रह पर उन्होंने सती को विधिवत पत्नी स्वीकार कर लिया। दक्ष-प्रजापति बड़ा अभिमानी था। वह अपने को देव तुल्य समझता था। एक देव सभा में भगवान शिव दक्ष प्रजापति के आगमन पर सम्मान स्वरूप उठ कर खड़े नहीं हुए। कुपित दक्ष प्रजापति ने भगवान शिव को बहिष्कृत कर दिया। कालांतर दक्ष प्रजापति ने एक समय यज्ञ का आयोजन किया परन्तु उसमें पूर्व द्वेष के चलते भगवान शिव को आमंत्रित नहीं किया। सती ने पति से चलने का आग्रह किया परन्तु भगवान शिव ने बिना बुलाए जाने से मना किया। अधिक आग्रह करने पर भगवान शिव ने सती को जाने दिया परन्तु स्वयं समाधि में लीन हो गए। उधर सती ने जब अपने पिता से उनके पति को न बुलाए जाने का कारण पूछा तो उसके पिता ने भगवान शिव के प्रति फिर निरादर के भाव प्रकट किए। सती ने इसे अपना भी अपमान समझा एवं वे यज्ञ-कुंड में कूद गईं। सभी ओर हाहाकार मच गया।

अनहोनी जानकर भगवान शिव के गणों ने यज्ञ को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। दक्ष का सिर भी हवन की भेंट कर दिया। शिवजी सती के मृत शरीर को उठा कर तीनों लोकों में घूमने लगे। तब देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु ने चक्र से सती के मृत शरीर के टुकड़े काटकर गिरा दिए। इस तरह जहां सती की मृत देह के 51 अंग विभिन्न स्थानों पर गिरे। इन्हीं स्थानों को शक्तिपीठ माना जाता है। जनवरी 1957 में प्रकाशित कल्याण पत्रिका के पृष्ठ 513 पर जालंधर विश्वमुखी की बात इसे शक्तिपीठ ही सिद्ध करती है। इसी अंक के पृष्ठ 518 पर 51 शक्तिपीठों के उल्लेख में वर्णित है कि इस स्थान पर सती का वाम स्तन गिरा था। ऐसा दृढ़ मत है कि शक्तिपीठ प्रस्थानत्रयी के भाष्यकार शंकराचार्य के समय में पुन: स्थापित किया गया जब वे 800 ई. में कश्मीर यात्र पर जाते हुए जालंधर ठहरे थे। बाबा हेमगिरि जी के आगमन के पश्चात् इस स्थान का पुनरुद्धार हुआ एवं त्रिपुरमालिनी मंदिर की पुन: स्थापना की गई।

कहां स्थित है मंदिर : देवभूमि हिमाचल एवं जम्मू-कश्मीर के प्रवेश द्वार पर होने के कारण देश-विदेश से आने वाले श्रद्धालु यहां नतमस्तक होकर जाते हैं। यहां उनके ठहरने, विश्रम एवं भंडारे की उत्तम व्यवस्था है। परिक्रमा में मुख्य मंदिर, वैष्णो एवं अमरनाथ गुफा, महाकाली मंदिर का आकर्षण देखते ही बनता है। अत्याधुनिक शौचालय, स्नानागार एवं धर्मशालाएं हैं। यह स्टेशन के करीब तथा सड़क मार्ग से जुड़ा है।

वार्षिक मेला : जिन भक्तजनों की मां मुरादें पूरी करती हैं, वे झंडे लेकर, बैंड-बाजों, ताशा पार्टियों के साथ नाचते-गाते महामाई के दरबार में नतमस्तक होने आते हैं। सारा दिन विभिन्न भजन मंडलियों द्वारा महामाई का गुणगान होता है। विभिन्न प्रकार के प्रसाद रूपी भंडारे लगाए जाते हैं।

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