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चेतना को परम चेतना तक पहुंचाने का साधन है मंत्र

ईश्वर नाम है उस शक्ति का जो प्रत्यक्ष न होते हुए भी सभी जगह है। पृथ्वी के कण-कण, अणु अणु में ईश्वर की उपस्थिति दर्ज होती है। फिर भी ईश्वर है या नहीं, इसको लेकर समाज आदि काल से ही दो वर्गों में बंटा है-आस्तिक और नास्तिक। आस्तिक ईश्वर की अलौकिक शक्ति को मानते हैं.

ईश्वर नाम है उस शक्ति का जो प्रत्यक्ष न होते हुए भी सभी जगह है। पृथ्वी के कण-कण, अणु अणु में ईश्वर की उपस्थिति दर्ज होती है। फिर भी ईश्वर है या नहीं, इसको लेकर समाज आदि काल से ही दो वर्गों में बंटा है-आस्तिक और नास्तिक। आस्तिक ईश्वर की अलौकिक शक्ति को मानते हैं और आध्यात्मिकता के माध्यम से ईश्वर की अलौकिक शक्ति को मानवीय तन-मन मे धारण करके आनन्द ग्रहण करते हैं। ईश्वर रूपी अलौकिक शक्ति के समीप तक अपनी प्रार्थना, व्यथा आदि को पहुंचाने के लिए मंत्रों को माध्यम बनाया जाता है। सरल शब्दों में इसे यह भी कहा जा सकता है कि मंत्र देवों के दूत हैं। इन दूतों के माध्यम से साधक अपनी प्रार्थना इष्ट तक पहुंचाने की प्रार्थना करता है।

इस माध्यम को ‘साधना’ भी कहा जा सकता है। हमारी चेतना को परम चेतना तक पहुंचने के मार्ग में हमारा मनोमस्तिष्क ही एक बाधा है। मंत्र इस बाधा को दूर करने का सशक्त उपाय है। ‘मननात त्रयते इति मंत्र:’ द्वारा यह सिद्ध हो जाता है कि मन जिसके मनन, चिंतन और ध्यान से पूरी तरह सुरक्षित हो जाता है, उसे ही मंत्र कहा जाता है। यह कहना कदापि अतिशयोक्ति न होगा कि मंत्र मानव के लिए ‘सुरक्षा कवच’ हैं। मनोवैज्ञानिकों के अनुसार जब एक शब्द या पंक्ति को बार-बार दोहराया जाता है, तब हमारा मन उस पर केन्द्रित हो जाता है और उस शब्द, नाद या मंत्र से उसी प्रकार के विचार उत्पन्न होने लगते हैं। विचार के सघन होने पर उसी प्रकार का भाव प्रभाव हमारे तन, मन तथा व्यवहार पर भी पड़ता है जिससे धीरे-धीरे ब्राह्य वातावरण एवं परिस्थितियां परिवर्तित होने लगती हैं।

इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है फ्रांस के मनोवैज्ञानिक ‘इमालिकुए’ का। इमालिकुए ने लाखों मरीजों को अपने सकारात्मक सुझावों से ठीक किया। वह अपने मरीजों से कहते थे कि उसके द्वारा दिए गए सुझावों को मंत्रों की तरह बार- बार दोहराते रहें। अगर आप भी पूरे विश्वास और समर्पण के साथ किसी मंत्र को बार-बार दोहराते रहें, तो निश्चय ही एक सप्ताह के अन्दर ही अपने व्यक्तित्व में नया सुधार कर सकते हैं। मनोविज्ञान के अनुसार आत्मसुझावों या मंत्रों का असर सबसे अधिक उस समय पड़ता हैं, जब आप सोने वाले होते हैं या निद्रा से जागृत अवस्था में आ रहे होते हैं। प्रयोग के लिए आप भी इन दोनों अवस्थाओं में निम्नांकित पंक्ति को एक मंत्र की तरह दोहराएं।

दिन में भी समय मिलते ही इसे दोहराना प्रारंभ कर दें ‘प्रभु कृपा से मैं दिन-प्रतिदिन शांत-संतुलित होता जा रहा हूं और मेरी आत्मा, परमात्मा से साक्षात्कार कर रही है।’ एक सप्ताह में ही आप स्वयं को पहले से कहीं अधिक शांत और संतुलित अनुभव करने लगेंगे। इसी प्रकार अन्य मंत्रों के भी निरंतर जाप से मन की चंचलता दूर होने लगती है और उस मंत्र में निहित प्रभाव को हम अनुभव करने लगते हैं। शुभकारी मंत्रों का जाप सदैव लाभकारी होता है किन्तु इस बात का ध्यान रखना भी परम आवश्यक है कि मंत्रों को उच्चारण शुद्ध हो। जब भी मन खाली रहे अपने मंत्र को अवश्य दोहराएं।

इसका ध्यान रखना भी आवश्यक है कि अपनी राशि या कुल के अनुसार निर्धारित इष्ट मंत्र का ही जाप करें। तुरंत अपने इष्ट या मंत्र को परिवर्तित करते रहने से सफलता नहीं मिलती है। सश्वुरू द्वारा प्रदत्त मंत्र सर्वाधिक कल्याणकारी होता है। इसीलिए कहा गया है – ‘एके साधे सब सधे, बहु साधे सब जाय।’ मनोवैज्ञानिक प्रयोगों से यह भी सिद्ध हो चुका है कि जब व्यक्ति पूरी तरह विश्राम की अवस्था में होता है, उस समय जपने वाले मंत्र सबसे अधिक प्रभावशाली होते है। यह सिद्ध हो चुका है कि मन की चेतना को परमचेतना (ईश्वर) तक पहुंचाने का एक मात्र साधन मंत्र ही है।

 

 

 

 

 

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