Site icon Dainik Savera Times | Hindi News Portal

आध्यात्मिक शक्तियों की प्रतीक है माता लाल देवी जी

अमृतसर के लाल भवन की मातृ स्वरूप पूज्य माता जी ने 21 फरवरी, 1923 को कसूर स्वरूप पूज्य माता जी ने 21 फरवरी, 1923 को कसूर (पाकिस्तान) में अवतार धारण किया। तेजस्वी माता जी ने 9 मास की अल्प आयु में मां चिंतपूर्णी के दरबार में चिंतपूर्णी के प्रवेश के दर्शन देकर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। माता लाल देवी के चार भाई श्री चरणदास, ज्ञान चंद, लालचंद तथा सोहन लाल जी थे। उनकी ज्ञानो वती व केसरी दो बहनें भी थीं। श्रद्धामयी माता जी जब 9 मास की थीं तो इनका पूरा परिवार होशियारपुर से चिंतपूर्णी धाम गया। 9 मास की कन्या जो अभी ठीक तरह से बैठना भी नहीं सीख पाई थी, उसमें मंदिर परिसर में पिंडी देवी के दर्शन करते ही उनके शरीर में विशेष शक्ति संचार देखा गया।

कन्या दैवी आवेश में समाधिस्थ होकर झूमने लगीं। माता जी छोटी-सी उम्र से ही मां का दूध ग्रहण न कर गाय माता का दूध लेती रहीं। लगभग 12 वर्ष की आयु में माता जी को घर पर छोड़ कर इनका परिवार हरिद्वार चला गया। मान्यता है कि माता जी की करुण पुकार पर भगवती गंगा ने इन्हें इनके घर पर दर्शन दिए व एक दिव्य पात्र भी दिया। गंगा से जुड़ा यह गठबंधन पूज्य माता जी को आजीवन हरिद्वार से जोड़े रहा। उनके आलौकिक जीवन का अत्यन्त आनन्दमयी समय गंगा और हरिद्वार के परिवेश से जुड़ा हुआ है। बाद में वे रानी का बाग, मॉडल टाऊन, अमृतसर में आ गए। उनके आदेश व संकल्प ने लाल भवन के निर्माण की योजना को रूप देना शुरू किया जो आज अमृतसर का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान बन चुका है।

अमृतसर के मॉडल टाऊन में स्थित लाल भवन में जुलाई 1956 में पूज्य माता लाल देवी जी ने साधारण सी चौंकी पर अष्टमी जागरण कर इस धरती को पवित्र किया और मंदिर का शिलान्यास किया। इसमें शुरू में शिव परिवार, लक्ष्मी नारायण, राम दरबार, हनुमान मंदिर, श्री राधा कृष्ण मंदिर, भगवती काली, चिंतपूर्णी, शीतला मां, दुर्गा जी तथा सन्तोषी माता के मंदिर बनाए गए। 9 जनवरी, 1994 को पूज्य माता जी ने अपना लौकिक शरीर त्याग दिया और ज्योतिस्वरूपा मां परमपिता की अखण्ड ज्योति में समा गईं। उनके द्वारा आरम्भ किए कार्य उनके सेवकों द्वारा विशाल स्तर पर चलाए जा रहे हैं। कई महानगरों में स्थापित उनके आश्रम मानवता एवं धर्म की सेवा में निरन्तर लगे हुए हैं।

Exit mobile version