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स्नान-दान का पर्व है मौनी अमावस्या, जानिए इसकी कथा के बारे में

माघ स्नान का सबसे अधिक महत्वपूर्ण पर्व अमावस्या ही है। इस दिन मौन रहकर गंगा-स्नान करना चाहिए। माघ मास की अमावस्या तथा पूर्णिमा दोनों तिथियां पर्व हैं। इन दिनों में पृथ्वी के किसी न किसी कोने में सूर्य या चन्द्र ग्रहण भी होता है। इसी विचार से धर्मज्ञ मनुष्य अमावस्या तथा पूर्णिमा को स्नान, दानादि पुण्य कर्म करते हैं।

कथा: कांचीपुरी में देवस्वामी नामक ब्राह्मण की पत्नी धनवती थी। उनके सात बेटे तथा एक बेटी थी। बेटी का नाम गुणवती था। ब्राह्मण ने सातों पुत्रों का विवाह करके बेटी के लिए वर की खोज में सबसे बड़े पुत्र को भेजा। तत्पश्चात् किसी पंडित ने पुत्री की जन्मकुंडली देखी और कहा कि सप्तपदी होते-होते यह कन्या विधवा हो जाएगी। वैधव्य दोष के निवारण हेतु पंडित जी ने बताया कि सोमा के पूजन से वैधव्य दूर होगा। सोमा का निवास-स्थान सिंहल द्वीप है।

जैसे-तैसे उसे प्रसन्न कर विवाह से पहले यहां बुला लो। देवस्वामी का सबसे छोटा बेटा बहन को अपने साथ लेकर इस हेतु सागर-तट पर गया। सागर पार करने की चिंता में भाई- बहन एक पेड़ की छाया में बैठ गए। पेड़ की खोल में से गिद्ध के बच्चे उनके क्रिया-कलापों को देखते रहे। सायंकाल उन बच्चों की मां आई। उन्होंने मां के कहने पर भी भोजन नहीं किया। वे बोले-‘नीचे दो प्राणी सुबह से भूखे-प्यासे हैं। जब तक वे कुछ नहीं खाएंगे, हम भी कुछ नहीं खाएंगे।’ दयाद्र गिद्ध ने इनसे कहा कि मैंने आपकी इच्छाओं को जान लिया है। वन में जो फल-फूल कंदमूल मिलेगा, मैं ले आती हूं। आप भोजन करें, मैं प्रात:काल आपको सागर पार कराकर सिंहल द्वीप की सीमा के पास पहुंचा दूंगी। इस तरह भाई-बहन गिद्ध की मदद से सोमा के यहां पहुंचे। उन्होंने सोमा की सेवा करनी शुरू कर दी।

वे नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़-लीप देते। एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा-हमारे घर को कौन बुहारता, लीपता-पोतता है? सब ने कहा कि हमारे सिवाय और कौन बाहर से इस काम को करने आएगा? एक दिन-रात को सोमा ने रहस्य जानना चाहा। वह सारी रात जागी और सब कुछ प्रत्यक्ष देखकर जान गई। ब्राह्मण-कन्या लड़के द्वारा घर के लीपने की बात जानकर उसे भाई ने सोमा से बहन-संबंधी सारी बात बता दी। सोमा ने उनकी श्रम-साधना तथा सेवा से प्रसन्न होकर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन देकर कन्या के वैधव्य दोष-निवारण का आश्वासन दे दिया। आग्रह करने पर सोमा उनके साथ ही चल दी। चलते समय सोमा ने बहुओं से कहा-मेरी अनुपस्थिति में यदि किसी का देहांत हो जाए तो उसके शरीर को नष्ट मत करना। मेरा इंतजार करना।

क्षण भर में सोमा कांचीपुरी में जा पहुंची। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तत्काल अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान किया। उसका पति जीवित हो उठा। सोमा आशीष देकर अपने घर चली गई। गुणवती को पुण्य-फल देने से सोमा के पुत्र, जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य-फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ वृक्ष की छाया में विष्णु जी का पूजन करके परिक्रमाएं कीं। इसके पूर्ण होने पर उसके परिवार के मृतक जन जीवित हो उठे। निष्काम-भाव से सेवा का फल मधुर होता है। इस व्रत का यही लक्ष्य है। मौन से तात्पर्य है बिना दिखावे के सेवा करना।

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