हरिद्वार से 24 किलोमीटर दूर प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर गंगा तथा चन्द्रभागा नदियों के संगम पर स्थित ऋषिकेश समुद्र तट से 365 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। प्राकृतिक दृष्टि से यह बेहद खूबसूरत नगर है। इस प्राचीन नगर की विशेषता इस बात से और भी अधिक पुष्ट होती है कि पर्वतों का दामन छोड़कर पतित पावनी गंगा नदी मैदानी भाग में यहीं पर उतरती है हालांकि ऋषिकेश मैदानी तथा पर्वतीय दोनों प्रकार का क्षेत्र है। ऋषिकेश की पृष्ठभूमि में स्थित तराई के घने वृक्षों से घिरी पहाड़ियां अपनी प्राकृतिक सुन्दरता के कारण लोक-लोचनों को बरबस अपनी ओर आकृष्ट करने से नहीं चूकती। प्रकृति की गोद में बसे ऋषिकेश का शान्त वातावरण मन को सुकून प्रदान करता है। गंगा के शान्त और स्वच्छ जल में आस-पास के हरे-भरे वृक्षों का प्रतिबिम्ब ऐसा प्रतीत होता है मानो हरियाली किसी दर्पण में अपना मुंह निहार रही हो।
ऋषिकेश में गंगा के उस पार एक और गंगा है जिसमें ज्ञान की गंगा का अनुभूत प्रवाह निरन्तर प्रवाहित रहता है। समग्र भारतीय वांगमय, चिन्तन, भक्तों एवं ऋषियों की साधना व सिद्धि का यहां सहज भाव से अनुभव होता है। विस्मृतों की स्मृति जगाने वाला यह केंद्र सांस्कृतिक भविष्य का पथ द्वीप है जो गीता भवन के नाम से जाना जाता है। गोविन्द भवन ट्रस्ट द्वारा निर्मित गीता भवन आज पांच भागों में अवस्थित है। गीता भवन भक्त प्रवर जयदयाल गोयन्दका की आस्था का प्रतिफल है । सेठ गोयन्दका भजन, कीर्तन व सत्संग के लिए ऋषिकेश आते थे तथा प्रतिदिन गंगा के उस पार जाकर शांत स्थान पर अपने चुनिन्दा साथियों के साथ आध्यात्म का अलख जगाते थे। ज्यों-ज्यों सत्संगियों की संख्या बढ़ती गयी, त्यों-त्यों आवास की आवश्यकता सामने आती गई।
आवास के संबंध में पहले कुछ अस्थाई प्रयास किये गये मगर पश्चात स्थाई आवास की प्रतीति ने गीता भवन की आधारशिला रखी। सेठ जयदयाल गोयन्दका के भाई हरिकिशनदास ने उत्तरप्रदेश के वन विभाग से गंगा के उस पार जमीन खरीदकर अपने भाई गोयन्दका को गीता भवन के निमित्त सौंप दी। गीता भवन की स्थापना 1944 में हुई। प्रारंभ में गीता भवन संख्या एक का निर्माण हुआ। पश्चात् विकास की प्रक्रि या अनवरत जारी रही। आज गीता भवन के छ: भाग गीता भवन संख्या एक की दीवारों पर संस्कृत में सम्पूर्ण गीता उत्कीर्ण है जो स्थापत्य की नयी मिसाल है। प्रात:काल से, शयन से पूर्व रात्रि तक, गीता भवन में सत्संग, प्रवचन, रामायण, गीता, गायत्री तथा महाभारत सहित अन्य धार्मिक क्रि याओं संबंधी चिंतन, मनन तथा साधना के दौर जारी रहते हैं जहां हजारों भक्तगण मन की शान्ति तथा सुकून हेतु उपस्थित रहते हैं। गीता भवन में भक्तजनों को नि:शुल्क ठहराया जाता है। भक्तजनों को प्रदत भवन द्वारा नि:शुल्क आवासीय व्यवस्था के साथ-साथ बर्तन, बिस्तर, पानी, बिजली आदि सुविधायें भी नि:शुल्क मुहैय्या करवायी जाती हैं।
इसके अलावा भक्तजनों हेतु गीता भवन संख्या एक व तीन में भोजनालय की भी व्यवस्था है जहां मात्र शुद्ध घी से निर्मित भरपेट खाना उपलब्ध कराया जाता है। भवन संख्या एक के बाहर आम रास्ते पर भवन से पहले गीता भवन की ओर से एक जलपान-गृह भी संचालित किया जा रहा है जहां शुद्ध घी से निर्मित मिठाइयां तथा कई प्रकार की नमकीन एवं पूड़ी सब्जी आदि भी बिना हानि-लाभ के उपलब्ध कराये जाते हैं। गीता भवन का खर्चा दानदाताओं के सहयोग से एवं आयुर्वेदिक दवाइयों की दुकानों एवं कपड़े की दुकान से प्राप्त आय से संचालित होता है। ये दुकानें गीता भवन के बाहर ही स्थित हैं तथा इनकी शाखाएं अन्य स्थानों पर भी हैं। गीता भवन की दीवारों पर संस्कृत में उत्कीर्ण किये गये गीता के श्लोकों के अलावा महाभारत तथा रामायण से संबंधित चित्रकारी एवं पौराणिक कथाओं के दृश्य भी दृष्टव्य हैं जो मनोहारी स्थिति पैदा करते हैं। गीता भवन द्वारा स्थापना से अब तक एक पंजिका का संधारण किया जा रहा है जिसमें आगन्तुक विशिष्टजनों द्वारा गीता भवन प्रबन्धन के संबंध में टिप्पणियां की जाती रही हैं। वास्तव में गीता भवन मार्गदर्शक, पथ- प्रदर्शक, धर्म एवं संस्कृति का बहुचेतन केंद्र है जो सदियों तक हमारा दिशा-बोध करता रहेगा, यही आशा है।