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नाग पूजन का दिन है नाग पंचमी

श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी नाग पंचमी के नाम से विख्यात है। इस दिन नागों का पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत रख कर नागों को दूध पिलाया जाता है। गरुड़ पुराण में ऐसा सुझाव दिया गया है कि नाग पंचमी के दिन घर के दोनों बगल में नाग की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाए। ज्योतिष के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं अर्थात शेषनाग आदि सर्पराजाओं का पूजन पंचमी को होना चाहिए। कथा : प्राचीन दंत कथाओं में अनेक कथाएं प्रचलित हैं। उनमें से एक कथा इस प्रकार है कि किसी ब्राह्मण की 7 पुत्रवधुएं थीं।

सावन मास में छ: बहुएं तो भाइयों के साथ मायके चली गई परन्तु सातवीं अभागिन के कोई भाई ही न था, कौन बुलाने आता? बेचारी ने अति दु:खी होकर पृथ्वी को धारण करने वाले शेषनाग को भाई के रूप में याद किया। करुणायुक्त, दीन वाणी को सुनकर शेषनाग जी वृद्ध ब्राह्मण के रूप में आए और उसे लिवाकर चल दिए। थोड़ी दूर रास्ता तय करने पर उन्होंने अपना असली रूप धारण कर लिया। तब वह उसे फन पर बिठा कर नाग लोक ले गए। वहां वे निश्चित होकर रहने लगे।

उसके पाताल लोक में निवास के दौरान शेष जी की कुल परम्परा में नागों के बहुत से बच्चों ने जन्म लिया। नाग के बच्चों को सर्वत्र विचरण करते देख शेषनाग रानी ने उस वधू को पीतल का एक दीपक दिया तथा बताया कि इसके प्रकाश से तुम अंधेरे में भी सब कुछ देख सकोगी। एक दिन अकस्मात उसके हाथ से वह दीपक टहलते हुए नाग के बच्चों पर गिर गया। परिणामस्वरूप सबकी थोड़ी पूंछ कट गई। यह घटना घटित होते ही कुछ समय बाद वह ससुराल भेज दी गई। जब अगला सावन आया तो वह वधू मंगल कामना करने लगी।

इधर क्रोधित नाग बालक माताओं से अपनी पूंछ कटने का आदिकारण इस वधू को मानकर बदला चुकाने आए थे, लेकिन उसे अपनी ही पूजा में श्रद्धावनत देखकर वे सब प्रसन्न हुए और उनका क्रोध समाप्त हो गया। बहन स्वरूप उस वधू के हाथ से प्रसाद रूप में उन लोगों ने दूध तथा चावल भी खाया। नागों ने उसे सर्पकुल से निर्भय होने का वरदान तथा उपहार में मणियों की माला दी। उन्होंने यह भी बताया कि जो श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को हमें भाई रूप में पूजेगा उसकी हम रक्षा करते रहेंगे। तब से नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा की जाती है।

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