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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 03 फरवरी 2024

रामकली महला ५ ॥ अंगीकारु कीआ प्रभि अपनै बैरी सगले साधे ॥ जिनि बैरी है इहु जगु लूटिआ ते बैरी लै बाधे ॥१॥ सतिगुरु परमेसरु मेरा ॥ अनिक राज भोग रस माणी नाउ जपी भरवासा तेरा ॥१॥ रहाउ ॥ चीति न आवसि दूजी बाता सिर ऊपरि रखवारा ॥ बेपरवाहु रहत है सुआमी इक नाम कै आधारा ॥२॥ पूरन होइ मिलिओ सुखदाई ऊन न काई बाता ॥ ततु सारु परम पदु पाइआ छोडि न कतहू जाता ॥३॥ बरनि न साकउ जैसा तू है साचे अलख अपारा ॥ अतुल अथाह अडोल सुआमी नानक खसमु हमारा ॥४॥५॥ {पन्ना 884}


पद्अर्थ: अंगीकारु = अंग से लगाना, पक्ष, सहायता। अंगीकारु कीआ = पक्ष किया, अंग से लगाया, चरणों में जोड़ा, बाँह पकड़ी। प्रभि अपनै = अपने प्रभू ने। सगले = सारे। बैरी = (कामादिक) वैरी। साधे = वश में कर दिए। जिनि = जिसने। जिनि बैरी = (कामादिक) जिस जिस वैरी ने (शब्द ‘जिनि’ एकवचन है)। ते = वह (बहुवचन)। लै = पकड़ के।1।
मेरा = मेरा (रक्षक)। माणी = मैं भोगता हूँ। जपी = जपता रहूँ। भरवासा = आसरा।1। रहाउ।
चीति = चिक्त में। आवसि = आती। रहत है = रहता है। सुआमी = हे स्वामी! कै अधारा = के आसरे।2।
होइ = (होय) हो जाता है। ऊन = ऊणा, थोड़ा, मुथाज। काई बाता = किसी बात। ततु = मूल, जगत का मूल। सारु = निचोड़, असल जीवन मनोरथ। परम पदु = सबसे ऊँचा आत्मिक दर्जा। कतहू = किसी और तरफ।3।
बरनि न साकउ = मैं बयान नहीं कर सकता। साचे = हे सदा कायम रहने वाले! अलख = हे अलख! अलख = जिसका सही स्वरूप् बयान ना किया जा सके। अतुल = जिसके गुणों को तोला ना जा सके, जिसके बराबर का और कोई ना मिल सके। थाह = गहराई।4।


अर्थ: हे भाई! मेरा तो गुरू रखवाला है, परमात्मा रक्षक है (वही) मुझे कामादिक वैरियों से बचाने वाला है। हे प्रभू! मुझे तेरा ही आसरा है (मेहर कर) मैं तेरा नाम जपता रहूँ (नाम की बरकति से ऐसा प्रतीत होता है कि) मैं राज (-पाट) के अनेकों भोगों के रस ले रहा हूँ।1। रहाउ।
हे भाई! प्यारे प्रभू ने जिस मनुष्य को अपने चरणों से लगा लिया, उसके उसने (कामादिक) सारे ही वैरी वश में कर दिए। (कामादिक) जिस जिस वैरी ने ये जगत लूट लिया है, (प्रभू ने उसके) वह वैरी पकड़ के बाँध दिए।1।
हे भाई! परमात्मा (जिस मनुष्य के) सिर पर रखवाला बनता है, उस मनुष्य के चिक्त में (परमात्मा के नाम के बिना, काम आदि का) कोई फुरना उठता ही नहीं। हे मालिक प्रभू! सिर्फ तेरे नाम के आसरे वह मनुष्य (दुनिया की अन्य गरजों से) बेपरवाह रहता है।2।
हे भाई! जिसको सारे सुख देने वाला प्रभू मिल जाता है, वह (ऊँचे आत्मिक गुणों से) भरपूर हो जाता है। वह किसी बात से मुथाज नहीं रहता। वह मनुष्य जगत के मूल-प्रभू को पा लेता है, वह सबसे ऊँचा आत्मिक दर्जा पा लेता है, और, इसको छोड़ के किसी ओर तरफ नहीं भटकता।3।
हे सदा कायम रहने वाले! हे अलख! हे बेअंत! मैं बयान नहीं कर सकता कि तू कैसा है । हे नानक! (कह-) हे बेमिसाल प्रभू! हे अथाह! हे अडोल मालिक! तू ही मेरा पति है।4।5।

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