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हुक्मनामा श्री हरमंदिर साहिब जी 09 जनवरी 2025

Shri Harmandir Sahib Ji

Shri Harmandir Sahib Ji

जैतसरी महला ५ ॥ आए अनिक जनम भ्रमि सरणी ॥ उधरु देह अंध कूप ते लावहु अपुनी चरणी ॥१॥ रहाउ ॥ गिआनु धिआनु किछु करमु न जाना नाहिन निरमल करणी ॥ साधसंगति कै अंचलि लावहु बिखम नदी जाइ तरणी ॥१॥ सुख स्मपति माइआ रस मीठे इह नही मन महि धरणी ॥ हरि दरसन त्रिपति नानक दास पावत हरि नाम रंग आभरणी ॥२॥८॥१२॥

हे प्रभु! हम जीव कई जन्मो से गुज़र कर अब तेरी सरन में आये हैं। हमारे सरीर को (माया के मोह के) घोर अँधेरे कुँए से बचा ले, आपने चरणों में जोड़े रख।१।रहाउ। हे प्रभु! मुझे आत्मिक जीवन की कोई समझ नहीं है, मेरी सुरत तेरे चरणों में जुडी नहीं रहती, मुझे कोई अच्छा काम करना नहीं आता, मेरा आचरण भी पवित्र नहीं है। हे प्रभु! हे प्रभु मुझे साध सांगत के चरणों मे लगा दे, ताकि यह मुश्किल (संसार) नदी पार की जा सके।१। दुनिया के सुख, धन, माया के मीठे स्वाद-परमात्मा के दास इन पदार्थों को (अपने) मन में नहीं बसाते। हे नानक! परमात्मा के दर्शन से ही वह संतोख साहिल करते हैं, परमात्मा के नाम का प्यार ही उनके जीवन का गहना है॥२॥८॥१२॥

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