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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 10 नवंबर 2023

गूजरी महला ५ ॥ मता करै पछम कै ताई पूरब ही लै जात ॥ खिन महि थापि उथापनहारा आपन हाथि मतात ॥१॥ सिआनप काहू कामि न आत ॥ जो अनरूपिओ ठाकुरि मेरै होइ रही उह बात ॥१॥ रहाउ ॥ देसु कमावन धन जोरन की मनसा बीचे निकसे सास ॥ लसकर नेब खवास सभ तिआगे जम पुरि ऊठि सिधास ॥२॥ होइ अनंनि मनहठ की द्रिड़ता आपस कउ जानात ॥ जो अनिंदु निंदु करि छोडिओ सोई फिरि फिरि खात ॥३॥ सहज सुभाइ भए किरपाला तिसु जन की काटी फास ॥ कहु नानक गुरु पूरा भेटिआ परवाणु गिरसत उदास ॥४॥४॥५॥

अर्थ :- (हे भाई ! मनुख की अपनी) चतुराई किसी काम नहीं आती । जो बात मेरे ठाकुर ने मिथी होती है वही हो के रहती है ।1 ।रहाउ । हे भाई ! मनुख पश्चिम की तरफ से जाने की सलाह बनाता है, परमात्मा उस को पूरब की तरफ ले चलता है । हे भाई ! परमात्मा एक खिन में पैदा कर के नास करने की ताकत रखने वाला है । हरेक फैसला उस ने अपने हाथ में रखा हुआ है ।1 । (देख, हे भाई !) ओर देशों पर पब्जा करने और धन इकठ्ठा करने की लालसा में ही मनुख के प्राण निकल जाते हैं, फौजें अहिलकार चोबदार आदि सब को छोड़ के वह परलोक की तरफ चल पड़ता है। (उस की अपनी सयानप धरी की धरी रह जाती है) ।2 । दूसरी तरफ देखो उस का हाल जो अपनी तरफ से दुनिया छोड़ चुका है) अपने मन के हठ के सहारे माया छोड़ के (ग्रिहसत त्याग के, इस को बड़ा श्रेष्ठ काम समझ के त्यागी बना हुआ वह मनुख) अपने आप को बड़ा जताता है यह ग्रिहसत निंदण-योग नहीं थी पर इस को निंदण-योग मिथ के इस को छोड़ देता है (छोड के भी) बार बार (ग्रिहस्तियों से ही ले ले के) खाता है ।3 । (सो, ना धन-पदार्थ इकठ्ठा करने वाली चतुराई किसी काम है और ना ही त्याग का माण कोई लाभ पहुंचाता है) वह परमात्मा अपने सुभाविक प्यार की प्रेरणा के साथ जिस मनुख के ऊपर दयावान होता है उस मनुख की (माया के मोह की) फांसी काट देता है । गुरु नानक कहते हैं ! हे नानक ! जिस मनुख को पूरा गुरु मिल जाता है वह ग्रिहसत में रहता हुआ माया की तरफ से निरमोह हो के परमात्मा की हजूरी में कबूल हो जाता है ।4 ।4 ।5 ।

 

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