हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 12 नवंबर 2023

रागु गोंड असटपदीआ महला ५ घरु २. ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ करि नमसकार पूरे गुरदेव ॥ सफल मूरति सफल जा की सेव ॥ अंतरजामी पुरखु बिधाता ॥ आठ पहर नाम रंगि राता ॥१॥ गुरु गोबिंद गुरू गोपाल ॥ अपने दास कउ राखनहार ॥१॥ रहाउ ॥ पातिसाह साह उमराउ पतीआए ॥ दुसट अहंकारी मारि पचाए ॥.

रागु गोंड असटपदीआ महला ५ घरु २. ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ करि नमसकार पूरे गुरदेव ॥ सफल मूरति सफल जा की सेव ॥ अंतरजामी पुरखु बिधाता ॥ आठ पहर नाम रंगि राता ॥१॥ गुरु गोबिंद गुरू गोपाल ॥ अपने दास कउ राखनहार ॥१॥ रहाउ ॥ पातिसाह साह उमराउ पतीआए ॥ दुसट अहंकारी मारि पचाए ॥ निंदक कै मुखि कीनो रोगु ॥ जै जै कारु करै सभु लोगु ॥२॥ संतन कै मनि महा अनंदु ॥ संत जपहि गुरदेउ भगवंतु ॥ संगति के मुख ऊजल भए ॥ सगल थान निंदक के गए ॥३॥ सासि सासि जनु सदा सलाहे ॥ पारब्रहम गुर बेपरवाहे ॥ सगल भै मिटे जा की सरनि ॥ निंदक मारि पाए सभि धरनि ॥४॥ जन की निंदा करै न कोइ ॥ जो करै सो दुखीआ होइ ॥ आठ पहर जनु एकु धिआए ॥ जमूआ ता कै निकटि न जाए ॥५॥ जन निरवैर निंदक अहंकारी ॥ जन भल मानहि निंदक वेकारी ॥ गुर कै सिखि सतिगुरू धिआइआ ॥ जन उबरे निंदक नरकि पाइआ ॥६॥ सुणि साजन मेरे मीत पिआरे ॥ सति बचन वरतहि हरि दुआरे ॥ जैसा करे सु तैसा पाए ॥ अभिमानी की जड़ सरपर जाए ॥७॥ नीधरिआ सतिगुर धर तेरी ॥ करि किरपा राखहु जन केरी ॥ कहु नानक तिसु गुर बलिहारी ॥ जा कै सिमरनि पैज सवारी ॥८॥१॥२९॥

अर्थ: हे भाई! पूरे सतिगुरु के आगे सदा सिर झुकाया कर, उसका दर्शन जीवन का लक्ष्य पूरा करता है, उसकी शरण पड़ने से जीवन सफल हो जाता है। हे भाई! गुरु उस प्रभु के नाम के रंग में रंगा रहता है जो हरेक के दिल की जानने वाला है, जो सबमें व्यापक है और जो सबको पैदा करने वाला है।1। हे भाई! गुरु गोबिंद (का रूप) है, गुरु गोपाल (का रूप) है, जो अपने सेवकों को (निंदा आदि से) बचाने योग्य है।1। रहाउ। हे भाई! गुरु जिस मनुष्यों के अंदर परमात्मा के प्रति प्यार दृढ़ कर देता है वे आत्मिक मण्डल में शाह-पातशाह व अमीर बन जाते हैं। दुष्टों-अहंकारियों को (अपने दर से) दुत्कार के दर-दर भटकने के राह पर डाल देता है। (सेवक की) निंदा करने वाले मनुष्य के मुँह में (निंदा करने की) बीमारी ही बन जाती है, सारा जगत (उस मनुष्य की) सदा शोभा करता है (जो गुरु की शरण पड़ा रहता है)।2। हे भाई! (जो मनुष्य गुरु की शरण पड़े रहते हैं, उन) संत-जनों के मन में बड़ा आत्मिक आनंद बना रहता है, संत जन गुरु को भगवान को अपने हृदय में बसाए रखते हैं। गुरु के पास रहने वाले सेवक के मुँह (लोक-परलोक में) रौशन हो जाते हैं पर निंदा करने वाले मनुष्य के (लोक-परलोक) सभी जगहें हाथों से निकल जाते हैं।3। (हे भाई! गुरु की शरण पड़ने वाला) सेवक अपने हरेक सांस के साथ परमात्मा और बेमुथाज (बेपरवाह) गुरु की सिफल-सालाह करता रहता है। हे भाई! जिस गुरु की शरण पड़ने से सारे डर-सहम दूर हो जाते हैं, वह गुरु सेवकों की निंदा करने वाले लोगों को (अपने दर से) दुत्कार के नीच आचरण के गड्ढे में फेंक देता है (भाव, निंदकों को गुरु का दर पसंद नहीं आता। नतीजतन, वे गुरु दर से टूट के निंदा में पड़ के अपने आचरण में दिन-ब-दिन नीच से नीच होते चले जाते हैं)।4। (इसलिए, हे भाई!) गुरु के सेवक की निंदा किसी भी मनुष्य को करनी ही नहीं चाहिए। जो भी मनुष्य (भले लोगों की) निंदा करता है, वह स्वयं दुखी रहता है। गुरु का सेवक तो हर वक्त एक परमात्मा का ध्यान धरे रखता है, जम-राज भी उसके नजदीक नहीं फटकता।5। हे भाई! गुरु के सेवक किसी के साथ बैर नहीं रखते, पर उनकी निंदा करने वाले मनुष्य उनका बुरा चितवने और कुकर्मों में फंसे रहते हैं। हे भाई! गुरु के सिख ने तो सदा अपने गुरु (के चरणों) में तवज्जो जोड़ी होती है। (इसलिए) सेवक तो (निंदा आदि के नर्क में से) बच निकलते हैं, पर निंदक (अपने आप को इस) नर्क में डाले रखते हैं।6। हे मेरे सज्जन! हे प्यारे मित्र! सुन (मैं तुझे वह) अटल नियम (बताता हूँ जो) परमात्मा के दर पर (सदा) घटित होते हैं। (वह अटल नियम ये है कि) मनुष्य जिस तरह का कर्म करता है वैसा ही फल पा लेता है। अहंकारी मनुष्य की जड़ अवश्य काटी जाती है।7। हे सतिगुरु! निआसरे लोगों को तेरा ही आसरा है। तू मेहर करके अपने सेवकों की इज्जत स्वयं रखता है। हे नानक! कह: मैं उस गुरु से सदके जाता हूँ जिसकी ओट चितारने ने मेरी इज्जत रख ली (और, मुझे निंदा आदि से बचा के रखा)।8।1।29।

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