हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 18 फरवरी 2024

गूजरी असटपदीआ महला १ घरु १ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ एक नगरी पंच चोर बसीअले बरजत चोरी धावै ॥ त्रिहदस माल रखै जो नानक मोख मुकति सो पावै ॥१॥ चेतहु बासुदेउ बनवाली ॥ रामु रिदै जपमाली ॥१॥ रहाउ ॥ उरध मूल जिसु साख तलाहा चारि बेद जितु लागे ॥ सहज भाइ जाइ ते नानक पारब्रहम लिव.

गूजरी असटपदीआ महला १ घरु १
ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ एक नगरी पंच चोर बसीअले बरजत चोरी धावै ॥ त्रिहदस माल रखै जो नानक मोख मुकति सो पावै ॥१॥ चेतहु बासुदेउ बनवाली ॥ रामु रिदै जपमाली ॥१॥ रहाउ ॥ उरध मूल जिसु साख तलाहा चारि बेद जितु लागे ॥ सहज भाइ जाइ ते नानक पारब्रहम लिव जागे ॥२॥ पारजातु घरि आगनि मेरै पुहप पत्र ततु डाला ॥ सरब जोति निरंजन स्मभू छोडहु बहुतु जंजाला ॥३॥ सुणि सिखवंते नानकु बिनवै छोडहु माइआ जाला ॥ मनि बीचारि एक लिव लागी पुनरपि जनमु न काला ॥४॥ सो गुरू सो सिखु कथीअले सो वैदु जि जाणै रोगी ॥ तिसु कारणि कमु न धंधा नाही धंधै गिरही जोगी ॥५॥

अर्थ: अर्थ: हे भाई! सर्व-व्यापक जगत के मालिक परमात्मा को सदा याद रखो। प्रभू को अपने हृदय में टिकाओ- (इसको अपनी) माला (बनाओ)।1। रहाउ। इस एक ही (शरीर-) नगर में (कामादिक) पाँच चोर बसे हुए हैं, मना करते-करते भी (इनमें से हरेक इस नगर के आत्मिक गुणों को) चुराने के लिए उठ दौड़ता है। (परमात्मा को अपने हृदय में बसा के) जो मनुष्य (इन पाँचों से) माया के तीन गुणों से और दस इन्द्रियों से (अपने आत्मिक गुणों की) पूँजी बचा के रखता है, हे नानक! वह (इनसे) सदा के लिए निजात प्राप्त कर लेता है।1। जिस माया का मूल प्रभू, माया के प्रभाव से ऊपर है, जगत पसारा जिस माया के प्रभाव से नीचे है, चारों वेद जिस (माया के बल के वर्णन) में लगे रहे हैं, वह माया सहजे ही (उन लोगों से) परे हट जाती है (जो परमात्मा को अपने हृदय में बसाते हैं, क्योंकि) वह लोग, हे नानक! परमात्मा (के चरणों) में सुरति जोड़ के (माया के हमलों से) सुचेत रहते हैं।2।

(ये सारा जगत जिस पारजात-प्रभू) फूल-पत्तियां-डालियां आदि पसारा है, जो प्रभू सारे जगत का मूल है, जिसकी ज्योति सब जीवों में पसर रही है, जो माया के प्रभाव से परे है, जिसका प्रकाश अपने आप से है, वह (सर्व-इच्छा-पूरक) पारजात (-प्रभू) मेरे हृदय आँगन में प्रगट हो गया है (और मेरे अंदर से माया वाले जंजाल समाप्त हो गए हैं)। (हे भाई! तुम भी परमात्मा को अपने हृदय में बसाओ, इस तरह) माया के बहुते जंजाल छोड़ सकोगे।3। गुरू नानक जी कहते हैं, हे (मेरी) शिक्षा सुनने वाले भाई! जो विनती नानक करता है वह सुन- (अपने हृदय में परमात्मा का नाम धारण कर, इस तरह तू) माया के बंधन त्याग सकेगा। जिस मनुष्य के मन में सोच-मण्डल में परमात्मा की लिव लग जाती है वह बार-बार जनम-मरण (के चक्कर) में नहीं आता।4।

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