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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 19 अगस्त 2024

धनासरी महला १ ॥ जीउ तपतु है बारो बार ॥ तपि तपि खपै बहुतु बेकार ॥ जै तनि बाणी विसरि जाइ ॥ जिउ पका रोगी विललाइ ॥१॥ बहुता बोलणु झखणु होइ ॥ विणु बोले जाणै सभु सोइ ॥१॥ रहाउ ॥ जिनि कन कीते अखी नाकु ॥ जिनि जिहवा दिती बोले तातु ॥ जिनि मनु राखिआ अगनी पाइ ॥ वाजै पवणु आखै सभ जाइ ॥२॥

अर्थ :- (सिफत सलाह की बानी विसरने से) जींद बार बार दुखी होती है, दुखी हो हो कर (फिर) और और विकारों में परेशान होती है। जिस सरीर में (भाव, जिस मनुख को) परभू की सिफत- सलाह के बाणी भूल जाती है, वह सदा विलाप में रहता है जैसे कोई कोड़ी मनुख।१। (सुमिरन से खाली रहने के कारण हम जो दुःख खुद बुला लेते है) उनके बारे में गिला-शिकवा करना व्यर्थ है, क्योंकि परमात्मा हमारे गिला करने के बिना ही (हमारे सारे रोगों का) कारण जानता है।१।रहाउ। (दुखों से बचने के लिए उस परभू का सिमरन करना चाहिए) जिस ने कान दिए, आँखे दी, नाक दिया, जिस ने जिव्हा दी जो जल्दी जल्दी बोलती है, जिस ने हमारे सरीर पर कृपा कर के जीवन को (सरीर में) टिका दिया, (जिस की कला से सरीर में) श्वास चलता है और मनुख हर जगह (चल -फिर और बोल चाल कर सकता है।२।

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