हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 21 अप्रैल 2024

आसा ॥ जब लगु तेलु दीवे मुखि बाती तब सूझै सभु कोई ॥ तेल जले बाती ठहरानी सूंना मंदरु होई ॥१॥ रे बउरे तुहि घरी न राखै कोई ॥ तूं राम नामु जपि सोई ॥१॥ रहाउ ॥ का की मात पिता कहु का को कवन पुरख की जोई ॥ घट फूटे कोऊ बात न पूछै.

आसा ॥ जब लगु तेलु दीवे मुखि बाती तब सूझै सभु कोई ॥ तेल जले बाती ठहरानी सूंना मंदरु होई ॥१॥ रे बउरे तुहि घरी न राखै कोई ॥ तूं राम नामु जपि सोई ॥१॥ रहाउ ॥ का की मात पिता कहु का को कवन पुरख की जोई ॥ घट फूटे कोऊ बात न पूछै काढहु काढहु होई ॥२॥ देहुरी बैठी माता रोवै खटीआ ले गए भाई ॥ लट छिटकाए तिरीआ रोवै हंसु इकेला जाई ॥३॥ कहत कबीर सुनहु रे संतहु भै सागर कै ताई ॥ इसु बंदे सिरि जुलमु होत है जमु नही हटै गुसाई ॥४॥९॥

अर्थ: (जैसे) जब तक दिए में तेल है, और दिए के मुख में बाती है, तब तक (घर में) हर एक चीज नज़र आती है | तेल जल जाए, बाती बुझ जाए, तो घर सुना हो जाता है (उसी प्रकार, सरीर में जब तक श्वास हैं तब तक जिंदगी कायम है, तब तक हर एक चीज़ ‘अपनी’ महसूस होती है, पर श्वास ख़त्म हो जाने पर जिंदगी कि जोति बुझ जाती है और यह सरीर अकेला रह जाता है) |१| (उस समय) हे पगले! तुझे किसी ने एक पल भी घर में नहीं रहने देना| सो, भगवान् का नाम जप, वोही साथ निभाने वाला है|१|रहाउ| यहाँ बताओ, किस कि माँ? किस का बाप? और किस कि बीवी? जब सरीर रूप बर्तन टूटता है, कोई (इस को) नहीं पूछता, (तब) यही पड़ा होता है (भाव, हर जगह से यही आवाज आती है) कि इस को जल्दी बहार निकालो|२| घर कि दहलीज पर माँ बैठ कर रोती है, और भाई चारपाई उठा कर (शमशान को) ले जाते हैं| केश बिखेर कर पत्नी रोती है, (पर) जीवात्मा अकेले ही जाती है|३| कबीर जी कहते हैं- हे संत जनो! इस डरावने समुन्द्र कि बाबत सुनो (भाव, आखिर नतीजा यह निकलता है) ( कि जिन को ‘अपना’ समझ रहा था, उनसे साथ टूट जाने पर, अकेले) इस जीव पर (इस के किये कर्मो अनुसार) मुसीबत आती है, यम (का डर) सर से टलता नहीं|४|९|

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