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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 23 फरवरी 2024

धनासरी महला ३ ॥
सदा धनु अंतरि नामु समाले ॥ जीअ जंत जिनहि प्रतिपाले ॥ मुकति पदारथु तिन कउ पाए ॥ हरि कै नामि रते लिव लाए ॥१॥ गुर सेवा ते हरि नामु धनु पावै ॥ अंतरि परगासु हरि नामु धिआवै ॥ रहाउ ॥ इहु हरि रंगु गूड़ा धन पिर होए ॥ सांति सीगारु रावे प्रभु सोए ॥ हउमै विचि प्रभु कोए न पाए ॥ मूलहु भुला जनमु गवाए ॥२॥ गुर ते साति सहज सुखु बाणी ॥ सेवा साची नामि समाणी ॥ सबदि मिलै प्रीतमु सदा धिआए ॥ साच नामि वडिआई पाए ॥३॥ आपे करता जुगि जुगि सोए ॥ नदरि करे मेलावा होए ॥ गुरबाणी ते हरि मंनि वसाए ॥ नानक साचि रते प्रभि आपि मिलाए ॥४॥३॥

अर्थ: हे भाई! गुरू की (बताई) सेवा करने से (मनुष्य) परमात्मा का नाम-धन हासिल कर लेता है। जो मनुष्य परमात्मा का नाम सिमरता है, उसके अंदर (आत्मिक जीवन की) सूझ पैदा हो जाती है। रहाउ।हे भाई! जिस परमात्मा ने सारे जीवों की पालना (करने की जिम्मेदारी) ली हुई है, उस परमात्मा का नाम (ऐसा) धन (है जो) सदा साथ निभाता है, इसको अपने अंदर संभाल के रख। हे भाई! विकारों से खलासी कराने वाला नाम-धन उन मनुष्यों को मिलता है, जो सुरति जोड़ के परमात्मा के नाम (-रंग) में रंगे रहते हैं।1।हे भाई! प्रभू-पति (के प्रेम) का ये गाढ़ा रंग उस जीव स्त्री को चढ़ता है, जो (आत्मिक) शांति को (अपने जीवन का) गहना बनाती है, वह जीव-स्त्री उस प्रभू को हर वक्त हृदय में बसाए रखती है। पर अहंकार में (रह के) कोई भी जीव परमात्मा से नहीं मिल सकता। अपने जीवन दाते को भूला हुआ मनुष्य अपना मानस जन्म व्यर्थ गवा जाता है।2।हे भाई! गुरू से (मिली) बाणी की बरकति से आत्मिक शांति प्राप्त होती है, आत्मिक अडोलता का आनंद मिलता है। (गुरू की बताई हुई) सेवा सदा साथ निभने वाली चीज है (इसकी बरकति से परमात्मा के) नाम में लीनता हो जाती है। जो मनुष्य गुरू के शबद में जुड़ा रहता है, वह प्रीतम प्रभू को सदा सिमरता रहता है, सदा-स्थिर प्रभू के नाम में लीन हो के (परलोक में) इज्जत कमाता है।3।जो करतार हरेक युग में खुद ही (मौजूद चला आ रहा) है, वह (जिस मनुष्य पर मेहर की) निगाह करता है (उस मनुष्य का उससे) मिलाप हो जाता है। वह मनुष्य गुरू की बाणी की बरकति से परमात्मा को अपने मन में बसा लेता है। हे नानक! जिन मनुष्यों को प्रभू ने खुद (अपने चरणों में) मिलाया है, वह उस सदा-स्थिर (के प्रेम रंग) में रंगे रहते हैं।4।3।

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