हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 23 मई 2024

सलोक मः ५ ॥ अंम्रित बाणी अमिउ रसु अंम्रितु हरि का नाउ ॥ मनि तनि हिरदै सिमरि हरि आठ पहर गुण गाउ ॥ उपदेसु सुणहु तुम गुरसिखहु सचा इहै सुआउ ॥

धर्म : सलोक मः ५ ॥ अंम्रित बाणी अमिउ रसु अंम्रितु हरि का नाउ ॥ मनि तनि हिरदै सिमरि हरि आठ पहर गुण गाउ ॥ उपदेसु सुणहु तुम गुरसिखहु सचा इहै सुआउ ॥ जनमु पदारथु सफलु होइ मन महि लाइहु भाउ ॥ सूख सहज आनदु घणा प्रभ जपतिआ दुखु जाइ ॥ नानक नामु जपत सुखु ऊपजै दरगह पाईऐ थाउ ॥१॥

अर्थ :- भगवान का नाम आत्मिक जीवन देने वाला जल है, अमृत का स्वाद देने वाला है; (हे भाई !) सतिगुरु की अमृत बसने वाली बाणी के द्वारा इस भगवान-नाम को मन में, शरीर में, हृदय में सिमरो और आठो पहिर भगवान की सिफ़त-सालाह करो । हे गुर-सिक्खो ! (सिफ़त-सालाह वाला यह) उपदेश सुणो, जिंदगी का असल मनोरथ यही है । मन में (भगवान का) प्यार टिकाए, यह मनुखा जीवन-रूप कीमती दाति सफल हो जाएगी । भगवान का सुमिरन करने से दु:ख दूर हो जाता है, सुख, आत्मिक अढ़ोलता और बयंत खुशी प्राप्त होती है । हे नानक ! भगवान का नाम जपने से (इस लोक में) सुख पैदा होता है और भगवान की हजूरी में जगह मिलती है ।1 ।

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