आसा महला ५ छंत घरु ७ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सलोकु ॥ सुभ चिंतन गोबिंद रमण निरमल साधू संग ॥ नानक नामु न विसरउ इक घड़ी करि किरपा भगवंत ॥१॥ छंत ॥ भिंनी रैनड़ीऐ चामकनि तारे ॥ जागहि संत जना मेरे राम पिआरे ॥ राम पिआरे सदा जागहि नामु सिमरहि अनदिनो ॥ चरण कमल धिआनु हिरदै प्रभ बिसरु नाही इकु खिनो ॥ तजि मानु मोहु बिकारु मन का कलमला दुख जारे ॥ बिनवंति नानक सदा जागहि हरि दास संत पिआरे ॥१॥
अर्थ :-हे नानक ! (बोल-) हे भगवान ! (मेरे ऊपर) कृपा कर, मैं एक घड़ी के लिए भी तेरा नाम ना भूल, मैं सदा भलीआँ सोचों सोचता रहूँ, मैं गोबिंद का नाम जपता रहूँ, मैं गुरु की पवित्र संगति करता रहूँ।१। (हे भाई !) औस भीगी रात में (आकाश में) तारे चमकते हैं (उसी प्रकार, परमात्मा के प्रेम में भीगे हुए हृदय वाले मनुखों के चित्-आकाश में सुंदर आत्मिक गुण चमक मारते हैं)। मेरे राम के प्यारे संत जन (सुमिरन की बरकत के साथ माया के हमलो की तरफ से) सुचेत रहते हैं। परमात्मा के प्यारे संत जन सदा ही सुचेत रहते हैं, हर समय परमात्मा का नाम सिमरते हैं। संत जन अपने हृदय में परमात्मा के सुंदर कोमल चरणों का ध्यान धरते हैं (और, उस के दर पर अरदास करते हैं-) हे भगवान रता जितने समे के लिए भी हमारे दिल से दूर ना हो। संत जन आपने मन का माण छोड़ के, मोह और विकार दूर करके आपने सारे दु:ख पाप जला लेते हैं। नानक बेनती करता है-(हे भाई !) परमात्मा के प्यारे संत परमात्मा के दास सदा (माया के हमलो की तरफ से) सुचेत रहते हैं।१।