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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 25 मई 2024

गोंड ॥ खसमु मरै तउ नारि न रोवै ॥ उसु रखवारा अउरो होवै ॥ रखवारे का होइ बिनास ॥ आगै नरकु ईहा भोग बिलास ॥१॥ एक सुहागनि जगत पिआरी ॥ सगले जीअ जंत की नारी ॥१॥ रहाउ ॥ सोहागनि गलि सोहै हारु ॥ संत कउ बिखु बिगसै संसारु ॥ करि सीगारु बहै पखिआरी ॥ संत की ठिठकी फिरै बिचारी ॥२॥ संत भागि ओह पाछै परै ॥ गुर परसादी मारहु डरै ॥ साकत की ओह पिंड पराइणि ॥ हम कउ द्रिसटि परै त्रखि डाइणि ॥३॥ हम तिस का बहु जानिआ भेउ ॥ जब हूए क्रिपाल मिले गुरदेउ ॥ कहु कबीर अब बाहरि परी ॥ संसारै कै अंचलि लरी ॥४॥४॥७॥

अर्थ: (ये माया) एक एैसी सोहागन नारि है जिसको सारा जगत प्यार करता है, सारे जीव-जंतु इसको अपनी स्त्री बना के रखना चाहते हैं (अपने वश में रखना चाहते हैं)।1। रहाउ। (पर इस माया को स्त्री बना के रखने वाला) मनुष्य (आखिर) मर जाता है, ये (माया) पत्नी (उसके मरने पर) रोती भी नहीं, क्योंकि इसका रखवाला (पति) कोई पक्ष और बन जाता है (सो, ये कभी भी विधवा नहीं होती)। (इस माया का) रखवाला मर जाता है, मनुष्य यहाँ इस माया के भोगों (में मस्त रहने) के कारण आगे (अपने लिए) नर्क बना लेता है।1। इस सोहागनि नारी के गले में हार शोभा देता है (भाव, जीवों का मन-मोहनें के लिए सदा सजी-धजी सुंदर बनी रहती है)। (इस को देख-देख के) जगत खुश होता है, पर संतों को ये जहर (जैसी) लगती है। वेश्वा (की तरह) सदा श्रृंगार किए रहती है, पर संतों द्वारा धिक्कारी हुई बेचारी (संतों से) परे-परे ही फिरती है।2। (ये माया) भाग के संतों की शरण पड़ने की कोशिश करती है, पर (संतों पर) गुरू की मेहर होने के कारण (ये संतों की) मार से डरती है (इस वास्ते नजदीक नहीं आती)। ये माया प्रभू से टूटे हुए लोगों की जिंद-जान बनी रहती है, पर मुझे (तो) ये भयानक डायन दिखती है।3। जब मेरे सतिगुरू जी मेरे पर दयालु हुए और मुझे मिल गए, तब से मैंने इस माया के भेद को पा लिया है। हे कबीर! अब तू बेशक कह- मुझसे तो यह माया परे हट गई है, और संसारी जीवों के पल्ले जा लगी है।4।4।7।

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