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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 26 मार्च 2024

गूजरी की वार महला ३ सिकंदर बिराहिम की वार की धुनी गाउणी ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ सलोकु मः ३ ॥ इहु जगतु ममता मुआ जीवण की बिधि नाहि ॥ गुर कै भाणै जो चलै तां जीवण पदवी पाहि ॥ ओइ सदा सदा जन जीवते जो हरि चरणी चितु लाहि ॥ नानक नदरी मनि वसै गुरमुखि सहजि समाहि ॥१॥ मः ३ ॥ अंदरि सहसा दुखु है आपै सिरि धंधै मार ॥ दूजै भाइ सुते कबहि न जागहि माइआ मोह पिआर ॥ नामु न चेतहि सबदु न वीचारहि इहु मनमुख का आचारु ॥ हरि नामु न पाइआ जनमु बिरथा गवाइआ नानक जमु मारि करे खुआर ॥२॥

अर्थ :- अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है, सलोक गुरु अमर दास जी का। यह जगत (भावार्थ, हरेक जीव) (यह चीज ‘मेरी’ बन जाए, यह चीज ‘मेरी’ हो जाए-इस) अणपत में इतना फँसा पड़ा है कि इस को जीवन का ढंग नहीं रहा । जो जो मनुख सतिगुरु के कहे पर चलते है वह जीवन-जुगति सीख लेते हैं, जो मनुख भगवान के चरणों में चित् जोड़ते हैं, वह समझो, सदा ही जीवित हैं, (क्योंकि) हे नानक ! गुरु के सनमुख होने से मेहर का स्वामी भगवान मन में आ बसता है और गुरमुखि उस अवस्था में जा पहुँचते हैं जहाँ पदार्थों की तरफ मन डोलता नहीं ।1। जिन मनुष्यों का माया के साथ मोह प्यार है जो माया के प्यार में मस्त हो रहे हैं (इस गफलित में से) कभी जागते नहीं, उन के मन में तौखला और कलेश टिका रहता है, उन्हों ने दुनिया के झंबेलिआँ का यह खपाणा आपने सिर ऊपर आप सहेड़िआ हुआ है। अपने मन के पिछे चलने वाले मनुष्यों की रहिणी यह है कि वह कभी गुर-शब्द नहीं वीचारदे । हे नानक ! उनको परमात्मा का नाम नसीब नहीं हुआ, वह जन्म अजाईं गवाँदे हैं और जम उनको मार के खुआर करता है (भावार्थ, मौत हाथों सदा सहमे रहते हैं) ।2।

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