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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 28 मई 2024

धर्म : आसा छंत महला ५ घरु ४ ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ हरि चरन कमल मनु बेधिआ किछु आन न मीठा राम राजे ॥ मिलि संतसंगति आराधिआ हरि घटि घटे डीठा राम राजे ॥ हरि घटि घटे डीठा अम्रितो वूठा जनम मरन दुख नाठे ॥ गुण निधि गाइआ सभ दूख मिटाइआ हउमै बिनसी गाठे ॥ प्रिउ सहज सुभाई छोडि न जाई मनि लागा रंगु मजीठा ॥ हरि नानक बेधे चरन कमल किछु आन न मीठा ॥१॥

अर्थ :- राग आसा, घर ४ में गुरु अर्जनदेव जी की बाणी ‘छंद’ । अकाल पुरख एक है और सतगुरु की कृपा द्वारा मिलता है । (हे भाई ! जिस मनुख का) मन परमात्मा के सुंदर कोमल चरणों में प्रोता जाता है, उस को (परमात्मा की याद के बिना) कोई ओर चीज मिठ्ठी नहीं लगती । साध संगत में मिल के वह मनुख भगवान का नाम सुमिरता है, उस को परमात्मा हरेक शरीर में बसता दिख जाता है (उस मनुख के मन में) आत्मिक जीवन देने वाला नाम-जल आ बसता है (जिस की बरकत के साथ उस के) जन्म मरन के दु:ख (जिंदगी के सारे दु:ख) दूर हो जाते हैं।

वह मनुख गुणों के खज़ाने भगवान की सिफ़त-सालाह करता है, आपने सारे दु:ख मिटा लेता है, (उस के अंदर से) हऊमै की (बंधी हुई) गांठ खुल जाती है । आत्मिक अढ़ोलता को प्यार करने वाला प्यारा भगवान उस को छोड़ के नहीं जाता, उस के मन में (भगवान-प्रेम का पक्का) रंग चड़ जाता है (जैसे) मजीठ (का पक्का रंग) । हे नानक ! जिस मनुख का मन भगवान के सुंदर कोमल चरणों में विझ गया, उस को (भगवान की याद के बिना) कोई ओर चीज मिठ्ठी नहीं लगती ।1 ।

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