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हुक्मनामा श्री हरिमंदिर साहिब जी 8 सितंबर 2023

रागु सोरठि बानी भगत रविदास जी की ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ दुलभ जनमु पुंन फल पाइओ बिरथा जात अबिबेकै ॥ राजे इंद्र समसरि ग्रिह आसन बिनु हरि भगति कहहु किह लेखै ॥१॥ न बीचारिओ राजा राम को रसु ॥ जिह रस अनरस बीसरि जाही ॥१॥ रहाउ ॥ जानि अजान भए हम बावर सोच असोच दिवस जाही ॥ इंद्री सबल निबल बिबेक बुधि परमारथ परवेस नही ॥२॥

यह मनुख जनम बहुत मुश्किल मिलता है, (पहले किये) भले कामो के फल सवरूप हमें मिला है, परन्तु हमारी अज्ञानता मैं यह व्यर्थ ही जा रहा है, (हमने कभी सोचा ही नहीं की) जो प्रभु की बंदगी से दूर रहे तो (देवतायों के राजा) इन्दर के स्वर्ग के महल भी किसी काम न आएंगे।१। (हम मायाधारी जीवों ने) जगत-प्रभु परमात्मा के नाम के उस आनंद को कभी नहीं बिचारा, जिस आनंद की बार्कर से (माया के) और सारे चस्के दूर हो जाते है।१।रहाउ। (हे प्रभु!) जानते बुझते हुए भी हम पागल व् मुर्ख बने हुए हैं, हमारी उम्र के दिन (माया की ही) अच्छी बुरी विचारों में बीत रहे हैं, हमारी काम=वासना बढ रही है, विचार-शक्ति घाट रही है, इस बात को हमने कभी नहीं सोचा की हमारी सब से बड़ी जरुरत क्या है।२।

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