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15 अक्टूबर से शुरू हो रही है शारदीय नवरात्रि, जानिए देवी के प्रादुर्भाव की कथा और इसके महत्व के बारे में

इस साल 15 अक्टूबर दिन रविवार से नवरात्रि का पर्व शुरू हो रहा है। नवरात्रि के दिनों में मां दुर्गा जी के नौ रूपों की पूजा की जाती है। आपको बता दें कि एक वर्ष में दो बार छह माह की अवधि के अंतराल पर नवरात्रि मनाई जाती है। मां दुर्गा को समर्पित यह पर्व हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इस साल नवरात्रि का पर्व 15 अक्टूबर से शुरू हो रहा है जिसका समापन 23 अक्टूबर 2023 को होगा।

देवी के प्रादुर्भाव की कथा
इसी पुस्तक में के दूसरे अध्याय में देवी प्रदुर्भाव की कथा भी लिखी गई है. रचनाकार ने विस्तार से बताया है कि इस सर्वशक्तिमान देवी का निर्माण कैसे और किस उद्देश्य के लिए हुआ. देवताओं के तेज से देवी का प्रादुर्भाव और महिषासुर की सेना का वध नाम के अध्याय में बताया गया है कि ‘पूर्वकाल में देवताओं और असुरों में पूरे सौ सालों तक घोर संग्राम हुआ. इसमें देवताओं के नायक इंद्र और असुरों की ओर से महिषासुर कर रहा था. इसमें देवता पराजित हुए और महिसाषासुर ने इंद्र पद पर जा बैठा. तब देवगण ब्रह्माजी को आगे करके शंकरजी और विष्णुजी के स्थान पर गए, जहां दोनों एक साथ बैठे थे. उन्हें पूरा वृतांत कहा.’ इस अध्याय के छठें श्लोक में वे कहते हैं –

सूर्येन्द्राग्न्यनिलेन्दूनां यमस्य वरुणस्य च ।
अन्येषां चाधिकारान् स स्वयमेवाधितिष्ठति ॥

इस दसवें श्लोक में लिखा गया है कि उनके मुख से एक महान तेज प्रकट हुआ. इसी प्रकार का तेज ब्रह्माजी, शंकरजी और इंद्रादि देवताओं के मुख से भी प्रकट हुआ. वह सब मिल कर एक हो गया. महान् तेजका वह पुंज जाज्वल्यमान पर्वत-सा जान पड़ा. देवताओंने देखा, वहाँ उसकी ज्वालाएँ सम्पूर्ण दिशाओंमें व्याप्त हो रही थीं. सम्पूर्ण देवताओंके शरीरसे प्रकट हुए उस तेजकी कहीं तुलना नहीं थी. एकत्रित होनेपर वह एक नारीके रूपमें परिणत हो गया और अपने प्रकाशसे तीनों लोकोंमें व्याप्त जान पड़ा. सप्तशती में विस्तार से लिखा गया है कि किस देवता के तेज से शरीर का कौन सा हिस्सा बना. तेज पुंज से प्रकट हुई इस देवी को देख महिषासुर के सताए देवता बहुत प्रसन्न हुए.

देवी दुर्गा को शक्तियां दी गईं
इसके पश्चात दुर्गा देवी को शक्तिशाली बनाने की प्रक्रिया शुरु हुई. इसमें पिनाकधारी भगवान् शंकरने अपने शूलसे एक शूल निकालकर उन्हें दिया; फिर भगवान् विष्णु ने भी अपने चक्रसे चक्र उत्पन्न करके भगवती को अर्पण किया. वरुणने भी शंख भेंट किया, अग्नि ने उन्हें शक्ति दी और वायुने धनुष तथा बाणसे भरे हुए दो तरकस प्रदान किये. सहस्र नेत्रों वाले देवराज इन्द्रने अपने वज्रसे वज्र उत्पन्न करके दिया और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घण्टा भी प्रदान किया. यमराज ने कालदण्ड से दण्ड, वरुण ने पाश, प्रजापति स्फटिकाक्षकी माला तथा ब्रह्माजी ने कमण्डलु भेंट किया.

सूर्य ने देवी के समस्त रोम कूपों में अपनी किरणोंका तेज भर दिया. काल ने उन्हें चमकती हुई ढाल और तलवार दी. क्षीरसमुद्र ने उज्ज्वल हार तथा कभी जीर्ण न होनेवाले दो दिव्य वस्त्र भेंट किये. साथ ही उन्होंने दिव्य चूड़ामणि, दो कुण्डल, कड़े, उज्ज्वल अर्धचन्द्र, सब बाहुओं के लिये केयूर, दोनों चरणों के लिये निर्मल नूपुर, गले की सुन्दर हँसली और सब अँगुलियों में पहनने के लिए विश्वकर्मा ने निर्मल फरसा भेंट किया. साथ ही अनेक प्रकारके अस्त्र और अभेद्य कवच दिये, इनके सिवा मस्तक और वक्ष:स्थलपर धारण करनेके लिये कभी न कुम्हलानेवाले कमलों की मालाएँ दीं.

जलधि ने उन्हें सुन्दर कमलका फूल भेंट किया हिमालय ने सवारी के लिये सिंह तथा भाँति – भाँति के रत्न समर्पित किये. धनाध्यक्ष कुबेर ने मधु से भरा पानपात्र दिया तथा सम्पूर्ण नागों के राजा शेषने, जो इ पृथ्वी को धारण करते हैं, उन्हें बहुमूल्य मणियोंसे विभूषित नागहार भेंट दिया. ये सब प्राप्त करके सबकी शक्ति से सर्वशक्तिमान हुई देवि ने भयंकर अट्टहास कर अपनी शक्ति का नाद भी किया. धार्मिक मान्यता है कि ऐसी सर्वशक्तिमान देवी की अराधना करने से मनुष्य का को आध्यात्मिक तौर पर बहुत लाभ होता है.

दुर्गा देवी के सिद्ध पीठ
बहुत से स्थानों पर दुर्गा देवी के सिद्ध पीठ हैं, जहां दर्शन –पूजन करके श्रद्धालु अपने को धन्य मानते हैं. कई सिद्धपीठों पर अलग अलग तरह की सिद्धियां अर्जित करने की भी मान्यता है. सप्तशती में ही दुर्गा के नौ रूपों का भी वर्णन है. नवरात्रि के नौ दिनों तक अलग-अलग रूपों की आराधना का भी विधान है. मीरजापुर में विंध्यवासिनी, मध्य प्रदेश में मैहर और दतिया में पीतांबरा देवी, असम में कमाख्या देवी उत्तर भारत के प्रमुख मंदिर हैं.

दक्षिण भारत में भी देवी के अलग अलग स्वरूपों के मंदिर हैं और श्रद्धालु उनकी पूजा अर्चना करते हैं. शक्ति के स्वरूप में नारीमूर्ति की उपासना स्त्री को पूजनीय मानने की हिंदू धार्मिक मान्यता को भी पुष्ट करता प्रतीत होता है. ये भी ध्यान रखने वाली बात है कि नवरात्र के अंत में कन्याओं को नवदुर्गा की तरह ही पूजन और भोजन कराने की परंपरा है.

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