Shri Harmandir Sahib Ji : जैतसरी महला ४ घरु १ चउपदे ॥ मेरै हीअरै रतनु नामु हरि बसिआ गुरि हाथु धरिओ मेरै माथा ॥ जनम जनम के किलबिख दुख उतरे गुरि नामु दीओ रिनु लाथा ॥१॥ मेरे मन भजु राम नामु सभि अरथा ॥ गुरि पूरै हरि नामु द्रिड़ाइआ बिनु नावै जीवनु बिरथा ॥ रहाउ ॥ बिनु गुर मूड़ भए है मनमुख ते मोह माइआ नित फाथा ॥ तिन साधू चरण न सेवे कबहू तिन सभु जनमु अकाथा ॥२॥ जिन साधू चरण साध पग सेवे तिन सफलिओ जनमु सनाथा ॥ मो कउ कीजै दासु दास दासन को हरि दइआ धारि जगंनाथा ॥३॥ हम अंधुले गिआनहीन अगिआनी किउ चालह मारगि पंथा ॥ हम अंधुले कउ गुर अंचलु दीजै जन नानक चलह मिलंथा ॥४॥१॥
अर्थ : हे मेरे मन! (सदा) परमात्मा का नाम सिमरा कर, (परमात्मा) सारे पदार्थ (देने वाला है)। (हे मन गुरू की शरण पड़ा रह) पूरे गुरू ने (ही) परमात्मा का नाम (हृदय में) पक्का किया है। और, नाम के बिना मानस जन्म व्यर्थ चला जाता है। रहाउ।(हे भाई! जब) गुरू ने मेरे सिर पर अपना हाथ रखा, तो मेरे हृदय में परमात्मा का रतन (जैसा कीमती) नाम आ बसा। (हे भाई! जिस भी मनुष्य को) गुरू ने परमात्मा का नाम दिया, उसके अनेकों जन्मों के पाप-दुख दूर हो गए, (उसके सिर से पापों का) कर्जा उतर गया।1।हे भाई! जो लोग अपने मन के पीछे चलते हैं वे गुरू (की शरण) के बिना मूर्ख हुए रहते हैं, वे सदा माया के मोह में फंसे रहते हैं। उन्होंने कभी भी गुरू का आसरा नहीं लिया, उनका सारा जीवन व्यर्थ चला जाता है।2।हे भाई! जो मनुष्य गुरू के चरणों की ओट लेते हैं, वे खसम वाले हो जाते हैं, उनकी जिंदगी कामयाब हो जाती है। हे हरी! हे जगत के नाथ! मेरे पर मेहर कर, मुझे अपने दासों के दासों का दास बना ले।3।हे गुरू! हम माया में अंधे हो रहे हैं, हम आत्मिक जीवन की सूझ से वंचित हैं, हमें सही जीवन जुगति की सूझ नहीं है, हम तेरे बताए हुए जीवन राह पर नहीं चल सकते। हे दास नानक! (कह–) हे गुरू! हम अंधों को अपना पल्ला पकड़ा, ता कि तेरे पल्ले लग के हम तेरे बताए हुए रास्ते पर चल सकें।4।