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ऐसा चमत्कारी धाम जहां से नहीं जाता कोई खाली, मनाेकामना पूरी हाेने पर चढ़ाएं जाते हैं बकरे

ऐसा चमत्कारी धाम जहाँ से कोई खाली नहीं जाता हैं। यहां पर पुत्र प्राप्ति की मनाेकामना पूरी हाेती हैं। मनाेकामना पूरी हाेने पर यहां पर बकरे चढ़ाएं जाते हैं, लेकिन इनकी बलि नहीं दी जाती। इस मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित हैं। यहां पर बाबा बालक नाथ जी स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान हैं। ताे चालिए आज हम आपकाे इस मंदिर से जुड़े कुछ और रहस्याें के बारे में बातते हैं।

हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर से 45 किलोमीटर दूर दियोट सिद्ध नामक सुरम्य पहाड़ी पर बाबा बालक नाथ धाम स्थित हैं। हमारे देश में अनेकानेक देवी-देवताओं के अलावा 9 नाथ और चौरासी सिद्ध भी हुए हैं जो सहस्त्रों वर्षों तक जीवित रहते हैं और आज भी अपने सूक्ष्म रूप में वे लोक में विचरण करते हैं। इसी प्रकार 84 सिद्धों में बाबा बालक नाथ जी का नाम आता है। प्राचीन मान्यता के अनुसार बाबा बालक नाथ जी को भगवान शिव का अंश अवतार माना जाता है। शाहतलाई में ही रहने वाली माई रतनो नामक महिला ने, जिनकी कोई संतान नहीं थी इन्हें अपना धर्म का पुत्र बनाया।बाबा जी ने 12 वर्ष माई रतनो की गऊएं चराईं थी।

एक दिन माता रतनो के ताना मारने पर बाबा जी ने अपने चमत्कार से 12 वर्ष की लस्सी व रोटियां एक पल में लौटा दीं। इस घटना की जब आस-पास के क्षेत्र में चर्चा हुई तो ऋषि-मुनि व अन्य लोग बाबा जी की चमत्कारी शक्ति से बहुत प्रभावित हुए। गुरु गोरख नाथ जी को जब से ज्ञात हुआ कि एक बालक बहुत ही चमत्कारी शक्ति वाला है तो उन्होंने बाबा बालक नाथ जी को अपना चेला बनाना चाहा परंतु बाबा जी ने उन्हें इंकार कर दिया, परन्तु जब गोरखनाथ ने उन्हें जबरदस्ती चेला बनाना चाहा तो बाबा जी शाहतलाई से उडारी मारकर धौलगिरि पर्वत पर पहुंच गए जहां पर बाबा जी की पवित्र सुंदर गुफा है। ऐसा माना जाता है कि बाबा बालकनाथ के ब्रहमचार्य सिद्ध होने के चलते पुराने वक्त मंज महिलाओं ने गुफा तक न जाने की परंपरा बना दी।

मंदिर के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही अखंड धूणा सबको आकर्षित करता है। यह धूणा बाबा बालक नाथ जी का तेज स्थल होने के कारण भक्तों की असीम श्रद्धा का केंद्र है। धूणे के पास ही बाबा जी का पुरातन चिमटा है। बताया जाता है कि जब बाबा जी गुफा में अलोप हुए तो यहां एक दीपक जलता रहता था, जिसकी रोशनी रात्रि में दूर-दूर तक जाती थी इसलिए लोग बाबा जी को, ‘दियोट सिद्ध’ के नाम से भी जानते हैं। वर्तमान समय में महंत राजिंद्र गिरि जी महाराज ही सेवा कर रहे हैं। लोगों की मान्यता है कि भक्त मन में जो भी इच्छा लेकर जाए वह अवश्य पूरी होती है। बाबा जी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसलिए देश-विदेश व दूर-दूर से श्रद्धालु बाबा जी के मंदिर में अपने श्रद्धासुमन अर्पित करने आते हैं।

यहां बकरे चढ़ाए तो जाते हैं, लेकिन कभी नहीं दी जाती बलि

यहां पर बकरे तो चढ़ाए जाते हैं, लेकिन बलि प्रदान पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है। बताया जाता है कि यहां जिंदा बकरों को चढ़ाने का रिवाज है और उसकी बलि नहीं दी जाती, बल्कि मंदिर प्रशासन उन बकरों की देखभाल करती है। इसके पीछे एक अनोखी कहानी है। कहते हैं हमीरपुर के एक आखिरी हिस्से पर स्थित दियोटसिद्ध की पहाड़ी में दियोट नामक राक्षस रहता था। एक दिन बाबा बालक नाथ इस पहाड़ी पर पहुंचे और उस राक्षस को यह जगह खाली करने को कहा, इस बात पर उस राक्षस ने एक शर्त रख दी कि वह तभी यह जगह खाली करेगा जब उसे भी प्रसाद में कुछ मिले। तब बालक नाथ ने कहा कि यह जगह तुम्हारे ही नाम से जाना जाएगा और यहां लोग बाबा बालक नाथ को रोट तथा दियोट राक्षय को बकरा भेंट करेंगे। सदियों से चली आ रही इस परंपरा में लोग बकरे की भेंट तो चढ़ाते हैं, लेकिन उसकी बलि नहीं दी जाती हैं।

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