हिमालय के पहाड़ों में ऐसा रहस्यमयी मंदिर, जिसे छूने पर लगता है ‘जुर्माना’

कुल्लूः हिमाचल के कुल्लू जिले के मलाणा गांव में एक रहस्यमयी मंदिर है। इस गांव के लोगों पर कोई भी भारतीय कानून लागू नहीं होता है। इन लोगों की अपनी एक संसद होती है, जहां पर वह फैसले करते हैं। यहां के लोग खुद को अकबर के वंशज मानते हैं। यहां पर सिर्फ जमलू देवता.

कुल्लूः हिमाचल के कुल्लू जिले के मलाणा गांव में एक रहस्यमयी मंदिर है। इस गांव के लोगों पर कोई भी भारतीय कानून लागू नहीं होता है। इन लोगों की अपनी एक संसद होती है, जहां पर वह फैसले करते हैं। यहां के लोग खुद को अकबर के वंशज मानते हैं। यहां पर सिर्फ जमलू देवता को ही माना जाता है। अन्य देवी-देवताओं की पूजा पर यहां प्रतिबंध है, ताे चलिए जानते हैं इस रहस्यमयी मंदिर के बारे में–

हिमालयी की गोद में देवभू‌मि हिमाचल में बसे मलाणा गावं के आराध्य जमलू देवता काे पूजा जाता हैं, जाे कि महाराज भगवान श्री विष्णु जी के छठवें अवतार भगवान परशुराम के पिता हैं। यह मंदिर गांव के प्रारंभ में ही आता है। मगर आस्थाण के अनुसार इस मं‌दिर और इसके आसपास किसी भी वस्तु को छूने मना है। अगर काेई सैलानी या बाहरी शख्स गलती करता हैं, ताे जुर्माने में एक हजार रूपए चुकाने पड़ता हैं। इसको लेकर सख्त हिदायतों वाले बोर्ड पूरे गांव में जगह-जगह पर लगे हुए हैं।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मुगल सम्राट अकबर बहुत बीमार हो गए। इस पर उन्हें किसी ने जमलू देवता के बारे में बताया, बस फिर क्या था अकबर जमलू के दर पर पहुंच गए और अपनी सेहत ठीक करने की फरियाद करने लगे। जिसका उल्लेख वीकीपीडिया पर भी मौजूद है। जमलू देवता ने उनका इलाज किया और उनके आशीर्वाद से अकबर बिल्कुल ठीक हो गए। इससे खुश होकर अकबर ने इस घाटी के लोगों से वसूला जाने वाला लगान हमेशा के लिए माफ कर दिया और साथ ही उन्हें पूरी तरह से आजाद भी कर दिया। तब से यहां पर गांव के अपने ही कानून चल रहे हैं।

पार्वती वैली की गोद में बसे मालणा गांव में यह मान्यता हैं कि यहां जमलू देवता के पुजारी केवल एक ही परिवार से होतें हैं। यह परिवार ही है जिसे यहां पर सफेद रंग की पगड़ी पहनने का हक प्राप्त है। इस गावं का कोई भी मुकद्दमा गांव की पंचायत से बाहर कभी नहीं जाता और शासन प्रणाली 2 हिस्सों मैं बंटी हुई है, निचला तथा ऊपरी सदन। निचले सदन को कनिष्ठा तथा ऊपरी सदन को जयेष्ठा कहा जाता है। जमलू देवता का पुराना मंदिर कुछ वर्ष पहले हुए अग्निकांड में जल गया था, जिसके बाद इस मंदिर का निर्माण दोबारा करवाया गया।

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