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अपने कार्य में उच्च पद प्राप्त करने के लिए अवश्य करें भगवान हनुमान जी की पूजा

भगवान हनुमान जी को कलयुगी देवता माना गया है। माना जाता है कि भगवान हनुमान जी की पूजा अर्चना करने से जीवन के सभी दुःख दूर होते है और जीवन में खुशाली आती है। यह तो हम सब अच्छे से जानते ही हैं कि हनुमान जी जैसे बलशाली, बुद्धिमान, सेवाभाव वाला, कर्मठ इत्यादि इस कलियुग में तो अभी तक कोई नहीं है।

बल का सदुपयोग, बलशाली होकर संयमित होना, सेवक बनकर ईश्वर का पद पाना, एकनिष्ठ भक्ति, समर्पण, कार्य के प्रति समर्पित, ईश्वर पर अटूट श्रद्धा, सामर्थ्य होते हुए भी सहनशीलता होनी चाहिए, स्वामी के प्रति अनन्य भक्ति, बल होने पर भी विनम्र होना, अपनी ताकत या शक्ति का सही इस्तेमाल करना, बेहतर टाइम मैनेजमैंट, जो लोग सोचते हैं कि यह कर ही क्या सकता है, उन्हें समय आने पर अपना बल और अहमियत बताना। उनका वर्क मैनेजमैंट भी कमाल का था। दूसरे स्थान में जाकर उस स्थान के संसाधनों को सही तरीके से उपयोग में लाना वह बखूबी जानते थे।

सीता माता के सामने उन्होंने खुद को लघु रूप में रखा, क्योंकि यहां वह पुत्र की भूमिका में थे, परन्तु संहारक के रूप में वह राक्षसों के लिए काल बन गए। एक ही स्थान पर अपनी शक्ति का दो अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करना भी हनुमान जी से सीखा जा सकता है। हनुमान जी में जितनी शक्ति थी, उतना ही धैर्य भी था इसलिए हमें भी हर मुश्किल समय में धैर्य से काम लेना चाहिए। अहंकार क्या होता है, इसे वे नहीं जानते थे, इसलिए हमें भी अहंकार नहीं करना चाहिए। हनुमान जी के समक्ष तमाम संकट आए, पर वह सभी बाधाएं पार कर अपने लक्ष्य में सफल हुए और श्रीराम के प्रिय भक्त बने। इसलिए हमें भी कभी हार नहीं माननी चाहिए।

उन्होंने किसी भी तरह के तनाव/ चिंता को अपने जीवन पर हावी नहीं होने दिया। इसलिए हमें भी तनाव/ चिंता मुक्त रहना चाहिए। श्री हनुमान के व्यक्तित्व का यह आयाम हमें ज्ञान के प्रति ‘समर्पण’ की शिक्षा देता है। इसी के आधार पर हनुमान जी ने अष्ट सिद्धियों और सभी नौ निधियों की प्राप्ति की। हनुमान जी के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता निरअंहकारिता थी, जिसका आशय है कि वह इतने ताकतवर थे कि सूरज तक को खा गए थे। वह सब कुछ कर सकते थे, मगर उन्होंने कभी अहंकार नहीं किया। हम सभी को हनुमान जी से यह सीख लेनी चाहिए कि अपने अंदर के अहं भाव को जला दें और हमेशा विनम्र होकर रहना सीखें। उन्होंने हमें बताया कि जब आप धर्म के साथ खड़े हैं और अन्याय तथा अधर्म के विरुद्ध हैं, तो किस तरह आप उच्च पद प्राप्त करते हैं।

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