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जाने; कौन थे ऋषि कश्यप, जिन्होंने की थी पूरी पृथ्वी रचना और क्यों दिया था भगवन शिव को शाप

Rishi Kashyap: ऐसे तो हम लोग कई कथा और कहानियों में ऋषि कश्यप का नाम सुनते हैं लेकिन ऋषि कश्यप के बारे में ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं। कश्यप ऋषि एक वैदिक ऋषि थे, इनकी गणना सप्तर्षि गणों में की जाती थी। हिंदू मान्यता के अनुसार, वह ऋग्वेद के सात प्राचीन ऋषियों, सप्तर्षियों में से एक हैं।

ऐसा माना गया है कि प्रारंभिक काल में ब्रह्मा जी ने समुद्र और धरती पर हर प्रकार के जीवों की उत्पत्ति की। इस काल में उन्होंने अपने कई मानस पुत्रों को भी जन्म दिया, जिनमें से एक मरीची थे। कश्यप ऋषि मरीची जी के विद्वान पुत्र थे। इनकी माता कला कर्दम ऋषि की बेटी व भगवान कपिल देव की बहन थीं. सृष्टि की रचना में कई ऋषि मुनियों ने अपना योगदान दिया। जब हम सृष्टि के विकास की बात करते हैं तो इसका अर्थ जीव, जन्तु या मानव की उत्पत्ति से होता है।

पुराण अनुसार सृष्टि की रचना और विकास के काल में धरती पर सर्वप्रथम भगवान ब्रह्माजी प्रकट ब्रह्माजी से दक्ष प्रजापति का जन्म हुआ। ब्रह्माजी के निवेदन पर दक्ष प्रजापति ने अपनी पत्नी असिक्नी के गर्भ से 66 कन्याएं पैदा की। इन कन्याओं में से 13 कन्याएं ऋषि कश्यप की पत्नियां बनीं। इस प्रकार ऋषि कश्यप की अदिति, दिति, दनु, काष्ठा, अरिष्टा, सुरसा, इला, क्रोधवशा, ताम्रा, सुरभि, सुरसा, विनता, कद्रू, और यामिनी आदि पत्नियां बनीं।

कश्यप को ऋषि-मुनियों में श्रेष्ठ माना गया हैं। पुराणों अनुसार हम सभी उन्हीं की संतानें हैं। सुर- असुरों के मूल पुरुष समस्त देव, दानव एवं मानव ऋषि कश्यप की आज्ञा का पालन करते थे। कश्यप ने बहुत से स्मृति-ग्रंथों की रचना की थी।

गोत्र का नाम भी है कश्यप

पुराणों के अनुसार, कश्यप ऋषि के वंशज ही सृष्टि के रचना में सहायक हुए है। कश्यप एक प्रचलित गोत्र का भी नाम है। यह एक बहुत व्यापक गोत्र है। कहते हैं कि जिस मनुष्य का गोत्र नहीं मिलता उसका गोत्र कश्यप मान लिया जाता है, क्योंकि एक परम्परा के अनुसार सभी जीवधारियों की उत्पत्ति कश्यप से हुई है।

परशुराम ने धरती का किया दान

भगवान परशुराम को ऋषि कश्यप के शिष्य थे. कथा के अनुसार, एक बार परशुराम जी ने पूरी धरती पर विजय प्राप्त कर जब समस्त क्षत्रियों का नाश कर दिया तो उन्होंने अश्वमेध यज्ञ किया. जिसके बाद उन्होंने पूरी धरती को अपने गुरु कश्यप मुनि को दान कर दी, जिसके बाद कश्यप जी ने परशुराम से कहा-अब तुम मेरे देश में मत रहो. अपने गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए परशुराम ने प्रत्येक रात पृथ्वी पर न रहने का संकल्प किया और पूरी पृथ्वी अपने गुरु ऋषि कश्यप को दान कर दी। वे रोजाना रात्रि में मन के समान तेज गमन शक्ति से महेंद्र पर्वत पर चले जाते थे।

ऋषि कश्यप ने भगवान् शिव को क्यों दिया था श्राप

भगवान् शिव एक क्रोधित देव के साथ-साथ एक उदार देवता भी माने जाते हैं। उनकी शरण में जो भी जाता है, उन सभी को सुरक्षा अवश्य मिलती है। इसी प्रकार एक बार दैत्‍य माली और सुमाली भी उनकी शरण में पहुंचे। वे गंभीर शारीरिक पीड़ा से त्रस्‍त थे क्योंकि सूर्य देव उनपर कृपा नहीं कर रहे थे। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने जब उनकी व्यथा सूनी, तो वे अत्‍यंत क्रोधित हो गए और क्रोध में आकर उन्होंने सूर्यदेव पर अपने त्रिशूल से प्रहार कर द‍िया। सूर्यदेव यह सहन नहीं कर पाए और रथ से नीचे गिर गए और उनकी मृत्यु हो गयी। उनके गिरते ही पूरी सृष्टि अंधकार में डूब गई। अपने पुत्र को इस हालत में देख प‍िता कश्‍यप ऋषि क्रोध में आकर भगवान् शिव के पास पहुँचे और आवेश में आकर उन्‍होंने शिवजी को शाप दे डाला। उन्‍होंने कहा कि जिस तरह से आज वह अपने पुत्र की हालत पर रो रहे हैं, एक द‍िन उन्‍हें भी अपने पुत्र के मौत से ऐसे ही दु:खी होना पड़ेगा।

जब भगवान श‍िव का क्रोध शांत हुआ, तो उन्‍होंने देखा कि संपूर्ण सृष्टि में अंधकार है। तब उन्‍होंने सूर्य देव को जीवन दान देने का फैसला दिया। लेकिन जब उन्हें ऋषि कश्यप के श्राप के बारे में पता चला, तो उन्होंने अपने परिवार को त्यागने का फैसला लिया। ब्रह्मा जी के बहुत अनुरोध पर ऋषि कश्यप ने अपने श्राप पर पुनर्विचार किया। उन्होंने कहा की शिवजी का पुत्र उनके ही हाथों अवश्य मारा जाएगा लेकिन मेरे पुत्र के भांति ही उसे जीवनदान अवश्य मिलेगा।

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