Devshayani Ekadashi : आषाढ़ शुक्ल एकादशी, जिसे देवशयनी एकादशी या हरिशयनी एकादशी कहा जाता है, आज पूरे भारत में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है। यह तिथि भगवान विष्णु के योगनिद्रा में जाने की मानी जाती है। इसके साथ ही चातुर्मास की शुरुआत भी हो जाती है, जो आगामी चार महीनों तक चलता है।
मान्यता है कि देवशयनी एकादशी पर व्रत और पूजा करने से व्यक्ति की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है। इस दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर योगनिद्रा में चले जाते हैं और फिर चार महीने बाद प्रबोधिनी एकादशी को जागते हैं।
तिथि और मुहूर्त:
एकादशी तिथि शुरू: 5 जुलाई शाम 6:58 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 6 जुलाई रात 9:14 बजे
व्रत पारण: 7 जुलाई सुबह
पारण का शुभ समय: सुबह 5:29 बजे से 8:16 बजे तक
पूजा विधि:
1. प्रातःकाल स्नान कर व्रत का संकल्प लें।
2. पूजा स्थल पर पीले वस्त्र से ढकी चौकी पर भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
3. शालीग्राम की स्थापना हो सके तो अवश्य करें।
4. गंगाजल छिड़क कर शुद्धिकरण करें और भगवान का षोडशोपचार पूजन करें।
5. पंचामृत से अभिषेक कर तुलसी, पीले पुष्प, पीत वस्त्र और चंदन-चावल अर्पित करें।
6. गाय के घी का दीपक जलाएं और भगवान की कथा, विष्णु चालीसा या सहस्त्रनाम का पाठ करें।
7. रात भर भजन-कीर्तन करते हुए जागरण करें और अगले दिन पारण कर व्रत संपन्न करें।
पारण के बाद करें यह कार्य:
व्रत के पारण के बाद गरीबों और ज़रूरतमंदों को भोजन कराना अत्यंत पुण्यकारी माना गया है। इससे भगवान विष्णु अति प्रसन्न होते हैं।
देवशयनी एकादशी के विशेष मंत्र
“शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥”
“ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
“श्री विष्णवे नमः”
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। दैनिक सवेरा टाइम्स एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)