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आज मनाई जा रही है वाल्मीकि जयंती, जानिए मोक्षदायिनी श्री रामायण के रचयिता भगवान वाल्मीकि जी के बारे में

श्रीमद वाल्मीकि रामायण महाकाव्य का अपने आप में विशेष महत्व है। इस प्रथम महाकाव्य की प्रतिष्ठा भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में वेद तुल्य है। इस महाकाव्य का एक-एक अक्षर अमरता का सूचक एवं महापाप का नाशक है। श्री रामायण राष्ट्र की अमूल्य निधि है। यह जहां परमेश्वर के भेद-अभेद एवं सर्वश्रेष्ठता का सारभूत है वहीं प्रथम महाकाव्य है। संसार के आवागमन से मुक्ति दिलाने वाली, मां के समान ध्यान रखने वाली व प्रथम भाषा जननी श्री रामायण है। महर्षि वाल्मीकि जी का प्रथम श्लोक संस्कृत भाषा का जन्मदाता है।

यही संस्कृत भाषा बाद में अनेक भाषाओं की जननी कहलाई एवं महर्षि वाल्मीकि जी संस्कृत भाषा के जनक कहलाए। रामायण शब्द की उत्पत्ति ‘राम’ और ‘आयण’ के योग से हुई है। राम व्यक्तिवाचक संज्ञा सूचक शब्द है जबकि ‘आयण’ शब्द का अर्थ चरित्र है अर्थात् श्री राम का चरित्र ही रामायण का मूल आधार है। श्रीमद् वाल्मीकि रामायण महाकाव्य एक विशाल अक्षय वट वृक्ष है। यह महाकाव्य भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को अपने विशालकाय आंचल में संजोए हुए है। वाल्मीकि रामायण में 40 हजार श्लोक हैं। कुल सात सर्ग हैं।

प्रत्येक सर्ग का अपना विशेष महत्व है। इस महाकाव्य का सुंदरकांड श्री वाल्मीकि रामायण की आत्मा है। रामायण का अन्तिम सर्ग लव-कुश कांड इन सात सर्गों से अलग है। इस कांड में लव-कुश की वीरता, शौर्य, रामायण गान, अश्वमेध यज्ञ, पिता- पुत्रों के युद्ध में अनगिनत सैनिकों का घायल होना, चारों भाइयों का पराजित होना और माता सीता जी का महर्षि जी से युद्ध शांत करने का अनुरोध करना ताकि पिता-पुत्रों के युद्ध में कुछ अनर्थ न हो जाए, का वर्णन किया गया है।

महर्षि वाल्मीकि जी का युद्ध भूमि में आना और अमृतवर्षा से पुन: सब को जीवित करना, श्री राम का पुत्रों लव-कुश से मिलाप और भगवान वाल्मीकि जी का श्री राम से कहना, ‘सीता, तन-मन, आत्मा एवं बुद्धि से पूर्णत: पवित्र है। यदि इसमें लेशमात्र भी अन्तर हो तो मेरी युग-युगान्तर की तपस्या भंग हो जाए।’ यही संयोग, यही अमर मिलन, यही राम परिवार का जयघोष एवं यही तप- तपस्या-तपस्वी का कथन सत्य है। महर्षि वाल्मीकि जी का रामायण महाकाव्य ज्ञान, विज्ञान, भाषा ज्ञान, ललित कलाओं, ज्योतिष शास्त्र, आयुर्वेद-इतिहास-राजनीति का केन्द्र बिन्दु है।

भगवान वाल्मीकि जी के अनुयायी बन, शिक्षा के प्रति सजग होकर अपनी सन्तानों को तन-मन- धन से जहां प्रेरित करना चाहिए वहीं बुराई का नाश कर उन्नति की ओर बढ़ने के लिए तैयार रहना चाहिए। शिक्षा विकास रूपी ताले की चाबी है। इसी से ही हम अपने भावी जीवन को उन्नत बना सकते हैं। शिक्षा के प्रति जागरूकता ही, अधिकारों के प्रति सच्ची लगन ही हमारे समाज को, हमारी सन्तानों को अच्छे मार्ग की ओर ले जा सकती है। यह धारणा ही इस पवित्र-पुनीत जन्मोत्सव भगवान वाल्मीकि जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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