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कार्य-सिद्धि का व्रत माना जाता है विजया एकादशी

सनातन धर्म में किसी भी शुभ कार्य या कार्यसिद्धि हेतु व्रत, अनुष्ठान, पूजा-अर्चना या हवन आदि करने की परम्परा रही है। विजया एकादशी पर पूजन का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्रीराम लंका पर आक्रमण करने के लिए समुद्र-तट पर पहुंचे थे। जब समुद्र ने राम को पार उतारने का मार्ग नहीं दिया, तब भगवान राम ने समुद्र तट पर निवास करने वाले ऋषियों से उपाय पूछा। ऋषियों ने कहा-हे राम, आप तो अनन्त सागरों को पार करने वाली सवर्त्र-शक्ति हो। फिर भी यदि आपने पूछा ही है ते सुनो-हम ऋषि-मुनि प्रत्येक काम को शुरू करने से पूर्व व्रत आदि अनुष्ठान करते हैं।

आप भी फाल्गुन कृष्णा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत कीजिए। एक मिट्टी का बर्तन लेकर उसे सतनाज पर स्थापित करो। उसके पास पीपल, आम, बट तथा गूलर के पत्ते रखो। एक बर्तन जौ से भरकर कलश स्थापित करो। जौ के बर्तन में श्री लक्ष्मीनारायण की स्थापना करके उनका विधिपूर्वक पूजन करो। रात्रि जागरण के पश्चात प्रात:काल जल-सहित कलश को सागर के निमित्त अर्पित कर दो। इस व्रत के प्रभाव से आपको समुद्र पथ दे देगा और रावण पर भी विजय होगी। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ।

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