Manoj Bajpayee : अभिनेता मनोज बाजपेयी की मानें तो श्याम बेनेगल जैसे दिग्गज फिल्मकार ने ही उनके चेहरे से परे जाकर उनकी कला की पहचान की और उन्हें फिल्म ‘जुबैदा’ में काम करने का मौका दिया। बाजपेयी ने कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वह किसी राजा की भूमिका निभाएंगे और 2001 में फिल्म निर्माता के समझाने पर उन्होंने ‘जुबैदा’ में यह किरदार निभाया। ‘मंडी’ और ‘अंकुर’ जैसी फिल्मों के साथ देश में कला सिनेमा को आगे बढ़ाने वाले बेनेगल का उनके 90वें जन्मदिन के ठीक नौ दिन बाद सोमवार शाम को मुंबई में निधन हो गया।
बाजपेयी की बेनेगल से मुलाकात 1998 में राम गोपाल वर्मा की फिल्म ‘सत्या’ में माफिया डॉन भीकू म्हात्रे की भूमिका निभाने के कुछ साल बाद हुई थी। बाजपेयी ने कहा, कि ‘उन्होंने मुझे राम गोपाल वर्मा के जरिए एक संदेश भेजा। वर्मा ने मुझसे सिर्फ एक बात कही, श्याम बेनेगल आपके साथ काम करना चाहते हैं। वह आपको किसी भूमिका में लेना चाहते हैं। मुझे नहीं पता कि फिल्म किस बारे में है, लेकिन आप उनकी किसी भी पेशकश को नकार नहीं सकते। यह उस फिल्म निर्माता के प्रति हमारा सम्मान और आदर होना चाहिए, इसलिए आप हां कहने जा रहे हैं। आप नकार नहीं सकते।’’ उन्होंने कहा, कि ‘मैं राम गोपाल वर्मा का बहुत आभारी हूं। मैंने निर्णय कर लिया कि वह मुझे जो भी काम देंगे, मैं करूंगा।’’
बाजपेयी ने बताया कि उन्होंने इसलिए बेनेगल की फिल्म के लिए हां तो कर दी लेकिन जब उन्हें पता चला कि फिल्म में करिश्मा कपूर के हीरो के रूप में उनकी भूमिका फतेहपुर के राजकुमार विजयेंद्र सिंह की है तो वह हैरान रह गए। बाजपेयी (55) ने कहा, कि ‘यह उनकी प्रतिभा थी कि उन्होंने मुझे मेरी शक्ल से परे देखा। उन्हें पूरा यकीन था कि यह भूमिका मनोज बाजपेयी ही करेंगे। लेकिन मैं ही था जो इस पर संदेह कर रहा था। उन्होंने मुझसे कहा, ये भारत के सभी राजाओं की तस्वीरें हैं और तुम मुझे बताओ कि तुम उनसे बेहतर दिखते हो या नहीं।’’
अभिनेता ने कहा, कि ‘उन्होंने ऐसा सिर्फ किरदार के प्रति मुझे सहज बनाने के लिए किया। मुझे उनके द्वारा दिये गए किरदार को लेकर बहुत संदेह था।’’ उल्लेखनीय है कि बेनेगल ने अपने कैमरे से भारत के मार्मिक, वास्तविकता से ओत-प्रोत और राजनीतिक पहलुओं को चित्रित किया। श्याम बेनेगल कला के अग्रदूत थे जिन्होंने ‘अंकुर’, ‘निशांत’ और ‘भूमिका’ जैसी फिल्मों के साथ सिनेमा के नियमों को फिर से लिखा। इससे मुख्यधारा की फिल्मों के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रशस्त हुआ। बेनेगल को समानांतर सिनेमा का प्रणोता माना जाता है। वह भारत के महानतम निर्देशकों में से एक थे जिनके काम को वैश्विक जगत पर दर्शक मिले।
बेनेगल 1974 में अपनी पहली फिल्म ‘अंकुर’ से सुर्खियों में आए। वह भारतीय समय और राजनीति के इतिहासकार थे, वह दुर्लभ कलाकार जिन्होंने विभिन्न माध्यमों – फिल्मों, वृत्तचित्रों, बायोपिक और महत्वाकांक्षी टीवी शो – में गैर-काल्पनिक और काल्पनिक दोनों तरह के विषयों को चित्रित किया। ‘अंकुर’ उनकी 25 से अधिक फिल्मों में से पहली थी, जिनमें ‘मंडी’, ‘मंथन’, ‘जुनून’, ‘कलयुग’ और ‘ज़ुबैदा’ शामिल हैं। उनकी उल्लेखनीय कृतियों में एक अन्य महान व्यक्ति एवं फिल्मकार सत्यजीत रे के जीवन पर आधारित वृत्तचित्र, देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ पर आधारित महत्वाकांक्षी तथा टेलीविजन शो ‘भारत एक खोज’ और संविधान निर्माण पर 10 भागों वाला धारावाहिक ‘संविधान’ शामिल हैं।
‘कलयुग’ जहां महाभारत का आधुनिक पुनर्कथन है, तो ‘भूमिका’ एक अभिनेत्री और उसके रिश्तों को पारखी नजर से प्रस्तुत करती है। ‘मंडी’ एक वेश्यालय और उसमें रहने वाली महिलाओं से संबंधित है जो अपने जीवन में पुरुषों को चतुराई से नियंत्रित करती हैं और ‘वेलकम टू सज्जनपुर’ उपन्यासकार बनने की चाह रखने वाले व्यक्ति के पत्र लेखक बनने पर आधारित व्यंग्य कथा है।
वह एक बहुत सम्मानित फिल्म निर्माता थे। बेनेगल ने अपने करियर में कई राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त किए। उन्हें 1976 में पद्म श्री और 1991 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 2005 में उन्हें सिनेमा के क्षेत्र में भारत के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। बेनेगल 2006 से 2012 तक राज्यसभा सदस्य भी रहे। गुर्दे की गंभीर बीमारी और 90 साल की उम्र के बावजूद बेनेगल में जिजीविषा कायम थी।