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जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये भारत और चीन के सार्थक कदम

 

भारत और चीन – आज के दो सबसे बड़े उत्सर्जक – जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाली समान चिंताओं को साझा करते हैं। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (IPCC) की रिपोर्ट और कई अन्य अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकला है कि दोनों देशों को जलवायु परिवर्तन के कारण पारिस्थितिक गिरावट, भोजन और पानी की कमी, कृषि बदलाव, स्वास्थ्य खतरे आदि के रूप में आसन्न खतरे का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, भारत और चीन ने विकासशील देशों के रूप में राष्ट्रीय परिस्थितियों को साझा किया है।

दोनों राष्ट्र अपने-अपने घरेलू मोर्चों पर सामाजिक-आर्थिक विकास, गरीबी उन्मूलन और स्वास्थ्य एवं खाद्य सुरक्षा चिंताओं जैसी गंभीर तीसरी दुनिया की चुनौतियों का सामना करते हैं। वैश्विक आबादी के लगभग एक तिहाई हिस्से का घर होने के कारण, इन देशों की विकास संबंधी आवश्यकताएं और आकांक्षाएं बहुत बड़ी हैं और निश्चित रूप से जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से और अधिक जटिल होने वाली हैं।

भारत और चीन अंतर्राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन वार्ता में विकासशील दुनिया की चिंताओं को व्यक्त करने वाले प्रमुख खिलाड़ियों के रूप में उभरे हैं और यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन से संबंधित किसी भी अंतर्राष्ट्रीय समझौते में समानता और न्याय के मुद्दों को शामिल किया जाए। इन देशों के सामने आने वाली समस्याओं की समानता को देखते हुए, भारत और चीन ने पिछले कुछ वर्षों में जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए इस पर काम करना शुरू कर दिया है।

दरअसल, पिछले दो दशकों में, चीन और भारत ने नियमित रूप से ऊर्जा के विश्वसनीय, किफायती और टिकाऊ स्रोत खोजने पर संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप के साथ अधिक सहयोग का वादा किया है। कोई अनुमान लगा सकता है कि औद्योगिक शक्तियों के साथ उनके नियमित शिखर सम्मेलन ऊर्जा सहयोग पर चर्चा करेंगे। चीन और भारत ने, अपने अमेरिकी और यूरोपीय समकक्षों के साथ, स्वच्छ ऊर्जा मंत्रिस्तरीय बैठकों की एक श्रृंखला में उत्साहपूर्वक भाग लिया है।

ये दर्शाता है कि ये दोनों पड़ोसी जलवायु परिवर्तन के प्रति कितने सजग़ हैं। ये प्रयास पूरी तरह से सार्थक हैं, लेकिन दोनों उभरते दिग्गजों के साथ अमेरिकी और यूरोपीय ऊर्जा संबंध सबसे अच्छे रूप में अस्थिर और सबसे खराब स्थिति में परेशान बने हुए हैं। चीन और भारत ने विकसित दुनिया को देखा है – जो अभी भी मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए काफी हद तक जिम्मेदार है जिसने ग्लोबल वार्मिंग में योगदान दिया है, अब धीरे-धीरे अपने कार्बन पदचिह्न को सीमित करना शुरू कर दिया है।

 

मगर यह काफ़ी नहीं है, अगर विकसित देश पहले ही चीन और भारत की तरह अपनी ज़िम्मेदारी पहले से समझते, तो शायद दुनिया की जलवायु में इतनी जल्दी बड़े स्तर पर परिवर्तन नहीं आता और ग्लोबल वॉर्मिंग काफ़ी हद तक कम होती मगर, अफ़सोस अमेरिका और यूरोप आज अपनी चिंता ज़ाहिर कर रहें हैं। हाल ही में भारतीय मौसम विभाग ने स्टैंडरडीज़्ड प्रिडिक्शन इंडेक्स (SPI) के डेटा जारी करते हुए बताया कि भारत की लगभग 31% भूमि अलग-अलग डिग्री से जूझ रही है। इसका कृषि, फसल उपज पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

SPI विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा एक विकसित टीम है जो विभिन्न मौसम संबंधी सूखे को दर्शाने वाले सूचकांक को दर्शाती है। जैसा कि हाल ही में भारत के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भारी बारिश और भूस्खलन से जान-माल का पिछले 100 वर्षों में सबसे अधिक नुक़सान हुआ है। जो दर्शाता है जलवायु परिवर्तन भारत के लिए कितना ख़तरनाक है, वहीं चीन में भी पिछले कई वर्षों के मुक़ाबले इस वर्ष सूखे, गर्मी और बाढ़ की भारी मार पड़ी है जिससे चीन को भी भारी नुक़सान झेलना पड़ा है।

हमें यह समझने की कोशिश करना चाहिये कि किस तरह से दुनिया के अलग-अलग देश जलवायु परिवर्तन के प्रति कितने गंभीर हैं और उससे निपटने के क्या उपाय कर रहें है, साथ ही एशिया के ये दोनों बड़े पड़ोसी किस तरह से जलवायु परिवर्तन पर कदम से कदम मिला कर साथ चल रहे हैं, जलवायु परिवर्तन के प्रति सजग होना ही भारत-चीन को बेहतर भविष्य दे सकता है जिसका यह दोनों देश ख़ास ख़्याल रख रहे हैं। जिसका नतीजा बेशक बेहतर ही होगा, परंतु यहाँ ये समझना भी बहुत ज़रूरी हो जाता है कि जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या केवल विकासशील देशों की ही हैं ?

क्या इस वैश्विक समस्या को अमेरिका और यूरोप तब गंभीर मानेंगे जब यह नियंत्रण से परे हो जाएगी? जलवायु परिवर्तन की वजह से ग्लोबल वार्मिंग दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है जिसका असर दुनिया भर में दिख रहा है, इसके प्रति हम सबको मिलकर काम करना होगा साथ ही यह ख़याल भी रखना पड़ेगा की विकासशील देशों के विकास में जो ऊर्जा की माँग है उस पर इसका असर ना पड़े, और प्राकृतिक संसाधनों का दोहन भी कम से कम हो। ऐसे कदम उठाने की अति आवश्यकता है।

(रिपोर्टर—देवेंद्र सिंह)

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